रेंहकोला माता मंदिर पर अदृश्य शक्ति आज भी करती पूजा-अर्चना।
मध्य प्रदेश के भिंड जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां पुजारी सहित लोगों का दावा है कि आज भी यहां कोई अदृश्य शक्ति सबसे पहले माता का पूजन करती है। रात में सफाई के बाद सुबह जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो यहां गर्भगृह में ताजी पूजन सामग्री चढ़ी हुई मिलती है।
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पुजारी के पहले आखिर कौन मंदिर में अलसुबह पूजा करके जाता है? दैनिक भास्कर की टीम इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए मंदिर पहुंची। यहां- स्थानीय लोग उस शक्ति को नाम वीर मलखान बताते हैं, जो आल्हा-ऊदल के चचेरे भाई थे। वे कहते रण कौशल देवी (स्थानीय लोग रेंहकोला माता नाम से पुकारते हैं) मलखान की आराध्य देवी हैं। आज भी वीर मलखान अपनी पत्नी महारानी गजमोतिन के साथ प्रतिदिन मंदिर आते हैं और सबसे पहले माता का सुबह पूजन करते हैं।
मंदिर में सुबह कपाट खुलते ही क्या पूजन सामग्री गर्भगृह में मिलती है, यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम गांव पहुंची। मंदिर में दो रातें बिताई। पढ़िए, यह रिपोर्ट…
रेंहकोला माता मंदिर, जहां पर भक्त पहुंच रहे हैं।
सबसे पहले रण कौशल माता मंदिर का इतिहास…
रण कौशल माता मंदिर का जुड़ाव मैहर में त्रिकूट पर्वत पर स्थित शारदा भवानी माता मंदिर से है। मैहर में भी ऐसी मान्यता है कि आल्हा-ऊदल अपनी आराध्य देवी का हर दिन अलसुबह पूजन करने आते हैं। वीर मलखान की राजधानी 11वीं सदी में भिंड जिला मुख्यालय से करीब 95 किलोमीटर दूर सिरिसागढ़ हुआ करती थी।
ऐसा कहा जाता है कि वीर मलखान हिंगलाज माता के परम भक्त थे। मां हिंगलाज ही उन्हें युद्ध शिक्षा देती थीं। समय-समय पर वे वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता के दर्शन के लिए जाया करते थे। ऐसा मान्यता है कि वीर मलखान ने माता से रण कौशल की शिक्षा लेने और नित्य प्रथम पूजा का आशीर्वाद मांगा।
हालांकि सिरिसागढ़ से यानी भिंड से पाकिस्तान जाना प्रतिदिन संभव न था, इसलिए उन्होंने माता को वहां से साथ चलने की विनती की। माता एक शर्त पर वीर मलखान के साथ आने को तैयार हुईं। उन्होंने कहा- जहां पर मूर्ति रख दोगे यानी पड़ाव डालकर विश्राम करोगे, वहीं पर मैं रुक जाऊंगी।
मलखान ने शर्त को मानते हुए माता की प्रतिमा हिंगलाज से लेकर सिरिसागढ़ के लिए प्रस्थान किया। वे महल के नजदीक भी आ गए। सेना माता रानी का धूमधाम से स्वागत करना चाहती थी, इसलिए अमाहा में उन्होंने वीर मलखान से पड़ाव डालने की इच्छा जाहिर की। मलखान के दिमाग से भी माता की शर्त निकल गई।
महल से 5 किलोमीटर दूर अमाहा के नजदीक पड़ाव डाला गया। उधर, सिरिसागढ़ में मां की अगवानी के लिए जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गईं। तैयारियां पूरी हुई और माता के नगर प्रवेश के लिए सभी पहुंचे। हालांकि माता शर्त अनुसार अमाहा गांव में विराजित हो गईं। इसके बाद माता का यहां मंदिर निर्माण करवाया गया। 11वीं सदी में पत्थरों से निर्मित यह प्राचीन मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है। ग्रामीणों का मानना है कि यहीं पर रहते हुए मलखान ने माता से रण कौशल की पूरी शिक्षा ली।

रण कौशल मंदिर में पुजारी सुबह मंदिर में पूजा करने पहुंचे थे।
रण कौशल मंदिर की पूरी कहानी…
आल्हा-ऊदल से संबंधित ग्रंथ जो बुंदेलखंड में लिखे गए हैं, उनमें वीर मलखान का भी कई बार उल्लेख आता है। उनकी राजधानी सिरिसागढ़ और आराध्य देवी रणकौशला देवी यानी रेंहकोला माता के बारे में भी वर्णन है।
पहूज नदी के नजदीक स्थित माता मंदिर दबोह कस्बे से करीब 4 किलोमीटर दूर बीहड़ से घिरा हुआ है। इस स्थान से मप्र और उत्तर प्रदेश के चार जिलों की सीमा बंटती है। इसमें मध्य प्रदेश के भिंड और दतिया जिले की सीमा, उत्तर प्रदेश के जालौन और झांसी जिले की सीमा शामिल है।
यह प्राचीन स्थान खंडहर में तब्दील हो चुका है। मंदिर से कुछ दूरी पर महल के अवशेष भी मौजूद हैं। मंदिर के पास ही धार्मिक आयोजन या जरूरत के अनुसार समिति ने तीन-चार कमरों का निर्माण करवाया है। एक कमरे में मंदिर की देखरेख करने वाला एक व्यक्ति रहता है। वह कहता है- तीन पीढ़ियों से उसका परिवार माता की सेवा कर रहा है।
टीम जब गांव पहुंची और यहां अपने आने की वजह बताई तो कुछ ग्रामीणों ने रात नहीं रुकने की सलाह दी, कुछ ने मंदिर से जुड़ी कहानियां बताईं। बीहड़ में मौजूद इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 10 फीट की एक रोड है। दिन में तो यहां आवाजाही रहती है, लेकिन रात में सन्नाटा पसरा रहता है। ग्रामीण कहते हैं कि रात में बहुत जरूरी होने पर ही हम उस ओर जाते हैं। सब से बात करने के बाद टीम ने मंदिर परिसर में ही रात गुजारने का प्लान किया।
रात करीब 8 बजे टीम मंदिर पहुंची, क्योंकि ग्रामीणों ने बताया था कि रात साढ़े 8 बजे शयन आरती के बाद मंदिर के पट बंद कर पुजारी अपने घर को लौट जाते हैं। मंदिर का सेवक भी अपने कमरे में चला जाता है। टीम मंदिर पहुंची तो यहां आरती की तैयारी चल रही थी।
मंदिर के मुख्य पुजारी हलधर शास्त्री को टीम ने अपना परिचय दिया और मंदिर आने का कारण बताते हुए रात रुकने की परमिशन मांगी। पुजारी से यह भी पूछा कि मंदिर को लेकर जो बातें होती हैं, उसमें कितनी सच्चाई है। इस पर पुजारी ने कहा- प्रतिदिन जब सुबह पट खुलते हैं, मंदिर के गर्भगृह में पूजन सामग्री माता की चरण पादुका के पास चढ़ी हुई मिलती है।
उन्होंने एक ऐसी बात बताई, जिससे टीम का रात रुकने का मन और पक्का हो गया। पुजारी ने कहा- आम दिनों में तो जल, चावल या फूल ही माता को अर्पित रहते हैं। नवरात्रि में दूसरे पूजन सामग्री भी चढ़ी मिलती है, जैसे कुमकुम, चुनरी… और भी बहुत कुछ।
पुजारी से पूछा- मंदिर परिसर कैमरे से लैस है। क्या गर्भगृह में लगे कैमरे में कोई कभी कैद नहीं हुआ। इस पर उन्होंने कहा- गर्भगृह में कैमरे नहीं लगाए गए हैं। बाहर लगे कैमरों में आज तक कोई कैद नहीं हुआ। पूजा करने कौन आता है, कब पूजा कर चला जाता है, यह किसी को नहीं पता है। पूर्वजों के समय से मंदिर में पूजन सामग्री चढ़ी होना मिलती रही है। कोई अदृश्य शक्ति ही माता का प्रथम पूजन करती है।
हमने कुछ और सवाल करने चाहे, पर पुजारी ने हाथ जोड़ते हुए कहा- आरती का समय हो रहा है। आप रात खुद ही रुक रहे हैं, सुबह अपनी आंखों से देख लीजिएगा। हमारे कहने से ज्यादा खुद देखेंगे तो यकीन हो जाएगा। रात रात साढ़े 8 बजे आरती खत्म कर पुजारी यह कहते हुए रवाना हो गए कि सुबह 4 बजे मिलते हैं। यह सुनसान क्षेत्र है, इसलिए समय रहते यहां से निकल जाते हैं। मंदिर का सेवादार यहां रहेगा।
दैनिक भास्कर की टीम के साथ सुबह कुछ ऐसा हुआ कि इस रहस्य को जानने के लिए उसे एक और रात मंदिर में गुजारनी पड़ी…

माता के चरणों में पूजन सामग्री चढ़ी हुई थी
पहले दिन भास्कर की टीम रात भर मंदिर में रही ये देखने की सुबह माता के चरणों में पूजन सामग्री और फूल चढ़े हुए है या नहीं। रात नौ बजे मंदिर की सफाई के बाद पट बंद हो गए। जो इक्का दुक्का श्रद्धालु थे वो भी माथा टेककर रवाना हो गए। मंदिर का सेवादार पास ही बने अपने कमरे में चला गया।
भास्कर की टीम सुबह होने का इंतजार करते हुए मंदिर की सीढ़ियों पर ही बैठ गई। जंगली जानवरों की आवाज के बीच रात तीन बजे कुछ हलचल दिखाई दी। ऐसा लगा कि कोई मौजूद है, लेकिन कुत्ते तेजी से दौड़ते हुए गुजर गए। सुबह के चार बज चुके थे। कुछ देर बार पुजारी हलधर शास्त्री मंदिर पर पहुंचे। उन्होंने हाथ जोड़े और माता से कुछ कहा।
उनसे पूछा तो बोले- पट खोलने के लिए माता की अनुमति लेना पड़ती है, वो ही ले रहा था। इसके बाद पुजारी शास्त्री ने जैसे ही पट खोले वहां मौजूद श्रद्धालुओं ने माता के जयकारे लगाए। जैसा सभी लोग दावा करते हैं वैसा ही नजारा दिखाई दिया। माता के चरण वाले पत्थर पर चावल, रातरानी के सफेद फूल और दो लाल गुड़हल के फूल चढ़े हुए थे।
जो दृश्य कैमरे में कैद हुआ

मंदिर में पुजारी ेके गेट खोलने के बाद बड़ी संख्या में भक्त पहुंच जाते हैं।
पुजारी का दावा- वीडियो बनाने माता की अनुमति लेना जरूरी टीम ने इस दृश्य को अपने मोबाइल कैमरे में कैद किया, मगर तकनीकी दिक्कत की वजह से कुछ देर बाद ये दृश्य मोबाइल से डिलीट हो गए। पुजारी शास्त्री ने दावा किया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने वीडियो बनाने के लिए माता की अनुमति नहीं ली। ये माता की अदृश्य पूजा है। आपको पहले माता की अनुमति लेना चाहिए।
आस्था और श्रद्धा के आगे बहुत से सवालों का जवाब नहीं मिलता, इसलिए टीम ने पुजारी से जाना कि माता की अनुमति लेने की क्या प्रोसेस है। उन्होंने सारी प्रोसेस बताई इसके बाद टीम ने दूसरे दिन वापस आने का फैसला लिया।

भास्कर की टीम जब शाम को मंदिर पहुंची तो पुजारी शास्त्री वहां मौजूद थे। शयन आरती के पहले टीम ने माता की पूजा-अर्चना की और पुजारी के कहे मुताबिक उनसे कवरेज के लिए अनुमति मांगी। शयन आरती के बाद एक बार फिर मंदिर के पट बंद हो गए। पिछली बार हुई तकनीकी दिक्कत इस बार न हो इसलिए भास्कर की टीम कुछ स्थानीय लोगों को अपने साथ लेकर गई।
इसमें दबोह कस्बे के स्थानीय निवासी सुधांशु मुद्गल और दिलीप नायक शामिल थे। उन्होंने भी शयन आरती से लेकर मंदिर के पट बंद होने की पूरी प्रोसेस को अपने मोबाइल में कैद किया। इस तरह से दो से तीन मोबाइल में ये सारे दृश्य कैद हुए थे। इसके बाद अगली सुबह का इंतजार था।
मंदिर के पट खुले और पूजन सामग्री मिली
सुबह चार बजे एक बार फिर पुजारी की बाइक मंदिर परिसर में आकर रुकी। पुजारी ने माथा टेका, फिर माता से अनुमति मांगी और कपाट खोल दिए। गर्भगृह में माता के चरणों में पूजन सामग्री अर्पित थी। एक दिन पहले की तुलना में ज्यादा वस्तुएं माता को चढ़ाई गई थीं। यहां फूल के साथ ही एक नींबू चढ़ा हुआ था। कुछ श्रृंगार का सामान भी अर्पित था। इस नजारे को टीम ने अपने कैमरे में कैद किया।
पुजारी हलधर शास्त्री ने अपना दावा दोहराते हुए कहा, ‘मैंने पहले ही कहा था कि ये स्थान रहस्यमयी है। आपने खुद अपनी आंखों से देखा। आप लोग रातभर यहां मौजूद थे, लेकिन किसी को आते और जाते नहीं देखा। ये भी दावा किया कि 11वीं सदी से 21वीं सदी तक यहां ऐसी ही अदृश्य पूजा हो रही है। उनसे पूछा कि ये कौन करता है, तो बोले- वीर मलखान।

मंदिर में माता गजमोतिन के साथ ही वीर मलखान की फोटो भी लगी हुई है।
मंदिर से जुड़ी 5 कहानियां को पढ़िए।
1.मां की अनुमति से होते मंदिर के हर कार्य
पुजारी ने यह भी बताया कि मंदिर में क्या होना है, क्या नहीं, सभी में माता की अनुमति ली जाती है। मंदिर में कोई भी कार्य कराए जाने से पहले पर्ची लिखकर रातभर माता के चरणों में रखी जाती है। अगले दिन फिर 12 साल से कम उम्र की कन्या से पर्ची खुलवाई जाती है। पर्ची में जो लिखा होता है, वैसा ही काम आगे किया जाता है।
उन्होंने बताया कि मंदिर के बाहर नौ देवी के स्वरूपों काे उकेरा गया है। एक खंभा बचा हुआ था। इस खंभे पर एक चित्र बनवाना था। इसके लिए पर्ची लिखी गई। इस पर्ची में गणेशजी, शंकरजी, हनुमानजी, वीर मलखान, माता गजमोतिन के नाम लिखे गए थे। अगले दिन जब पर्ची को कन्या के हाथ से खुलवाया गया तो वीर मलखान के नाम की पर्ची आई। उन्होंने कहा कि मंदिर से जुड़ी ऐसी कई अचंभित करने वाली बाते हैं।
2.मंदिर के रहस्य को जानने आया एक जवान हुआ मानसिक बीमार
मंदिर पर नित्य सुबह मंगला आरती में शामिल होने वाले श्रद्धालु हृदेश्य नायक ने बताया कि करीब 40 साल से माता मंदिर में नित्य पूजन के लिए आ रहा हूं। पहले इस मंदिर में गेट नहीं थे, केवल मठी थी। तब एक बार मैंने तीन बजे दर्शन किए, तब भी मंदिर पर पूजन सामग्री मिली थी। उनका कहना है कि मंदिर की पूजा के बारे में ज्यादा जानने के लिए एक रात एक एसएएफ के जवान ने कोशिश की। वह कई रातों तक पहरे पर बैठा रहा। आखिरकार वह मानसिक बीमार हो गया। वह किसी को कुछ भी बताने लायक नहीं रहा।
मंदिर में पूजन के लिए रोज आने वाले राजाभैया पाल ने बताया कि मेरी शादी के 16 साल तक कोई बच्चा नहीं हुआ। मंदिर में मैं और मेरी पत्नी ने अर्जी लगाई। माता ने मेरे निवेदन को स्वीकार किया। मेरे घर पहले बेटी का जन्म हुआ। उसके डेढ़ साल बाद मेरे घर बेटा जन्मा। पूरा परिवार हो गया। अब हर कार्य माता से बोलकर करता हूं। मेरी माता हर इच्छा पूरी कर रही है। नियमित माता के दर्शन करता हूं।
मंदिर पर दर्शन करने आई प्रगति गुप्ता का कहना है कि मैं बचपन से माता के दर्शन करने आती हूं। पूजा-अर्चना करती हूं। माता के दर्शन से आत्मशांति मिलती है। हर काम पूरे होते हैं। मेरे जीवन के ऐसे कई अनुभव हैं।
3. घोड़े को नुकीली चीज चुभी और परास्त हुए मलखान
मंदिर को लेकर किवदंती है कि दिल्ली के नरेश पृथ्वीराज चौहान और वीर मलखान के बीच कई महीनों तक युद्ध चला। ऐसा कहा जाता है कि वीर मलखान माता के भक्त थे और पृथ्वीराज भगवान शिव के। माता के आशीर्वाद से वीर मलखान का शरीर मां ने वज्र का कर दिया था।
पृथ्वीराज चौहान ने वीर मलखान को परास्त करने के लिए एक चाल चली। पूरे शरीर पर जब बाणों का असर नहीं हुआ तो वे अचंभित हो गए। उन्हें यह बात पता चली कि मां के आशीर्वाद से ही वीर मलखान परास्त नहीं हो रहे हैं। उन्होंने युद्ध के मैदान में जमीन के अंदर संसी गड़वा दी (एक नुकीला अस्त्र)। जैसे ही मलखान घोड़े पर सवार होकर आए, वैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने उन पर हमला कर घोड़े को मार गिराया। गुस्से में वीर मलखान पैदल ही पृथ्वीराज चौहान की ओर दौड़े, तब जमीन के अंदर गड़ी संसी उनके पैरों के तलुओं में चुभते हुए शरीर के अंदर घुस गई। इस तरह वे परास्त हुए थे।
4.अष्टधातु से निर्मित मां की अद्भुत प्रतिमा सोने की तरह चमकती है
मंदिर के पुजारी और श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां विराजमान मां की प्रतिमा विशेष महत्व रखती है। यह प्रतिमा अष्टधातु से निर्मित है और इसके निर्माण के लिए कारीगरों को कश्मीर से बुलाया गया था।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां एक पत्थर पर मां की प्रतिमा उकेरी हुई थी। उसी पत्थर को आधार मानकर ऊपर से अष्टधातु की प्रतिमा बनाई गई। यह प्रतिमा मां के आठ भुजाधारी महिषासुर मर्दिनी स्वरूप का दर्शन कराती है।
मंदिर के पुजारी का कहना है की मां का स्वरूप को प्रतिमा के रूप में निर्माण करने आए कारीगरों को स्वप्न में दर्शन देकर अपना स्वरूप बताया था, उसी आधार पर उन्होंने प्रतिमा को ढाला था। यह अष्टधातु प्रतिमा सोने की तरह चमकती हुई दिखती है
5. आल्हा-ऊदल की गाथा और संसीगढ़ की लाल मिट्टी
बुंदेलखंड की धरती वीरता की अनगिनत कहानी समेटे हुए है। इन्हीं में से एक गाथा आल्हा-ऊदल और उनके भाई मलखान के बीच जुड़े युद्ध की है। स्थानीय लोग आज भी इसे मुंह-जवानी सुनाते हैं। कहा जाता है कि भिंड जिले के दबोह नगर से लगभग चार-पांच किलोमीटर दूर संसीगढ़ गांव के पास यह युद्ध लड़ा गया था।
गांव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि युद्ध इतना भयानक था कि धरती खून से सराबोर हो गई थी। इसी कारण यहां की मिट्टी आज भी लाल दिखाई देती है। लोग मानते हैं कि यह लालिमा उसी भीषण संग्राम की गवाही देती है, जो सदियों पहले यहां लड़ा गया था।