जूतों की बदबू के लिए बनाई यूवी लाइट वाली शू-रैक:  भारत के साइंटिस्ट्स को मिलेगा Ig नोबेल 2025, यह हैं साइंस से जुड़े अजीबो-गरीब अवार्ड

जूतों की बदबू के लिए बनाई यूवी लाइट वाली शू-रैक: भारत के साइंटिस्ट्स को मिलेगा Ig नोबेल 2025, यह हैं साइंस से जुड़े अजीबो-गरीब अवार्ड


8 घंटे पहले

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मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगों में रहने वाले लोग अक्सर देखते होंगे कि ज्यादातर लोग फ्लैटों के बाहर शू-रैक रखते हैं। इसकी बड़ी वजह है जूते से बदबू आने की समस्या। इसी पर रिसर्च की है भारत के दो साइंटिस्ट विकास कुमार और सार्थक मित्तल ने। साल 2022 में इनकी स्टडी पब्लिश हुई थी। इसके लिए उन्हें नोबेल प्राइज Ig 2025 से सम्मानित किया गया है। इसकी घोषणा 18 सितंबर की रात को बोस्टन में की गई।

विकास कुमार ने कहा, ‘जब हमें पता चला कि हमें ये अवॉर्ड मिल रहा है तो पहले लगा कोई प्रैंक कर रहा है, क्योंकि हम इसके बारे में जानते ही नहीं थे। बाद में अवॉर्ड देने वाली संस्था के चीफ एडिटर मार्क अब्राहम ने हमें कई इमेल और फोन कॉल किए। इसके बाद कहीं जाकर हमें समझ आया कि ऐसा कोई अवॉर्ड भी है।’

मैगजीन का यह 2023 में छपा एडिशन है जिसमें उस साल के Ig नोबेल अवॉर्ड के बारे में पब्लिश किया गया है।

मैगजीन का यह 2023 में छपा एडिशन है जिसमें उस साल के Ig नोबेल अवॉर्ड के बारे में पब्लिश किया गया है।

हॉस्टल रूम से आया आइडिया

विकास कुमार शिव नाडर यूनिवर्सिटी में डिजाइन के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वहीं, सार्थक मित्तल उनके स्टूडेंट और रिसर्चर हैं। दोनों को इंजीनियरिंग डिजाइन के लिए यह अवॉर्ड दिया जा रहा है।

सार्थक मित्तल ने इस प्रोजेक्ट को एक स्टूडेंट असाइनमेंट के तौर पर शुरू किया था। उन्होंने देखा कि हॉस्टल में स्टूडेंट्स जूते कमरे के बाहर रखते थे। सार्थक ने कहा, ‘पहले मुझे लगा कि कमरे में जगह की कमी की वजह से स्टूडेंट्स शू-रैक बाहर रखते हैं। लेकिन बाद में मुझे पता चला कि इसकी असली वजह जूतों में से आने वाली बदबू है।’

बदबू खत्म करने वाली शू-रैक बना डाली

विकास और सार्थक ने मेडिकल लिटरेचर के आधार पर पता किया कि जूतों से आने वाली बदबू जूतों के अंदर जमा होने वाले बैक्टीरिया की वजह से आती है। इसके लिए उन्होंने एक ऐसी शू-रैक बनाई जिसमें अल्ट्रा-वॉयलट लैंप लगाया गया। वाटर फिल्टरों में भी ऐसा ही लैंप लगाया जाता है जो फिल्टर को सैनिटाइज करता है। अल्ट्रा-वॉयलट लैंप शू-रैक में भी यही काम करता है।

इसे लेकर प्रोफेसर विकास कुमार ने कहा, ‘डिजाइन के लिए आइडियाज बहुत छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने से आते हैं। समस्याओं के समाधान के लिए अलग-अलग फील्ड्स की नॉलेज का एकसाथ इस्तेमाल करना होता है। हमने इंजीनियरिंग, डिजाइन और माइक्रो-बायोलॉजी का इस्तेमाल किया है।’

पिज्जा खाने वाली छिपकली, लहसुन खाने वाली मांओं पर रिसर्च

  • शांति के लिए Ig नोबेल 2025 जर्मनी की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जेसिका वर्थमैन को मिला। जैसिका ने अपनी स्टडी में कहा कि शराब पीने से इंसान फॉरेन लैंग्वेज बेहतर बोल पाता है।
  • लिटरेचर के लिए अमेरिका के विलियम बीन को मरणोपरांत अवॉर्ड मिला। उन्होंने 35 साल तक अपने हाथ के नाखूनों का निरीक्षण और विश्लेषण किया और इससे संबंधित कई मेडिकल पेपर भी पब्लिश किए।
  • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पोलैंड के रिसर्चर्स को साइकोलॉजी का प्राइज दिया गया है। इन्होंने स्टडी किया कि लोगों को यह बताने से कि वो होशियार हैं, उनकी परफॉर्मेंस पर कैसा असर होता है। यह स्टडी खासतौर पर नार्सिसिस्ट यानी अहंकारी और घमंडी लोगों पर की गई थी।
  • न्यूट्रीशन का अवॉर्ड नाइजीरिया, टोगो, इटली और फ्रांस के रिसर्चर्स को दिया गया है। इन्होंने उन रेनबो छिपकलियों पर स्टडी किया जो पिज्जा खाने लगी थी। इनके पेपर में जानवरों की डाइट पर शहरीकरण के असर के बारे में बताया गया है।
  • अमेरिका की जूली मनेला और गैरी ब्यूचैंप को पीडियाट्रिक्स अवॉर्ड मिला। इन्होंने अपनी स्टडी में पाया कि जब दूध पिलाने वाली मां लहसुन खाती है तो उसका फ्लेवर ब्रेस्ट मिल्क में भी महसूस होता है। इसके साथ उसका असर बच्चे के मूड पर भी होता है।
  • जापान के 11 रिसर्चर्स को बॉयोलॉजी का प्राइज दिया गया। इन लोगों ने एक गाय पर जेबरा की तरह लाइनें पेंट कर दीं। इसमें पाया गया कि जिन गायों को पेंट किया गया था उनके आसपास बाकी गायों के मुकाबले कम कीड़े-मकोड़ों, मक्खियां आदी आईं। इससे पहले की एक स्टडी को बल मिल जिसमें यह कहा गया थी कि जेबरा का पैटर्न नेचुरल बग-रिपेलेंट हो सकता है।
  • इजराइल और अमेरिका के रिसर्चर्स को केमिस्ट्री का प्राइज मिला। इन लोगों ने यह स्टडी की कि क्या खाने के साथ टेफलॉन निगलने से इंसान का पेट बिना एक्स्ट्रा कैलोरी के जल्दी भर जाता है।
  • 9 देशों की टीम को एविएशन का अवॉर्ड मिला जिसमें रिसर्चर्स ने एक्सपेरिमेंट किया कि क्या शराब पिलाने से चमगादड़ की उड़ने की क्षमता बेहतर होती है।
  • यूरोप के साइंटिस्ट्स को फिजिक्स का प्राइज मिला। इन लोगों ने पास्ता सॉस की फिजिक्स समझने की कोशिश की। इनका मुख्य सवाल था कि आखिर पास्ता सॉस में गांठें क्यों रह जाती हैं।

भारत को मिला है 22वां अवॉर्ड

इस साल मिलने वाला नोबेल Ig भारत को मिलने वाला 22वां अवॉर्ड है। इससे पहले साल 2022 में भारत, चीन, मलेशिया और अमेरिका को मैकेनिकल इंजीनियरिंग का अवॉर्ड मिला था। इस टीम ने मर चुकी मकड़ियों को पुनर्जीवित कर उन्हें जकड़ने के टूल के तौर पर इस्तेमाल किया था।

साल 2020 में भारत और पाकिस्तान को संयुक्त रूप से शांति का पुरस्कार मिला था। दोनों देशों के डिप्लोमैट चुपके से आधी रात को एक-दूसरे के दरवाजे की घंटी बजाकर भाग जाते थे।

2003 में केरल के एक साइंटिस्ट को अवॉर्ड मिला था जिसने हाथी का सरफेस एरिया निकालने के लिए मैथमैटिकल इक्वेशन का इस्तेमाल किया था। 2001 में बेंगलुरु के न्यूरो साइंटिस्ट्स नाक में उंगली डालने की आदत पर स्टडी की थी। उन्हें भी Ig नोबेल दिया गया था।

1991 में शुरू हुआ था अवॉर्ड

साल 1991 में एक साइंस ह्यूमर मैगजीन ‘अनाल्स ऑफ इमप्रोबेबल’ ने इस अवॉर्ड की शुरुआत की थी। थोड़े सीरियस नोबेल प्राइज के नटखट वर्जन के रूप में Ig नोबेल प्राइज की शुरुआत की गई थी। इसका मोटो है, ‘पहले लोगों को हंसाओं और फिर सोचने के लिए मजबूर कर दो….।’ यह अवॉर्ड उन स्टडीज को हाइलाइट करने का काम करते हैं जो सुनने में सनकी और अजीब लगती हैं लेकिन असल में वो साइकोलॉजी, बायोलॉजी जैसे कई सब्जेक्ट्स से जुड़े जरूरी मुद्दे हाइलाइट करती हैं।

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