जतरा मेला के दौरान पारंपरिक तरीके से निकाला गया जुलूस।
बारह पड़हा जतरा सह मेला का आयोजन कांके रोड मिसिर गोंदा में किया गया। पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पहले पूजा-पाठ हुआ। ग्राम का पाहन प्रमुख पाहन बिरसा मुंडा ने रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार जतरा टांड स्थित जतरा खूंटा में चावल की रूड़ी छापा, सिन्दुर, अरवा चाव
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इस पूजा में कोटवार लक्ष्मण नायक व सिल्ली मुंडाईन ने पाहन का सहयोग किया। मुख्य अखड़ा में पूजा पाठ होने के बाद खौड़हा मंडली के साथ महतो (उरांव) राजा जीतू लकड़ा को काठ के घोड़े पर सवार होकर जतरा खूंटा में परिक्रमा कर कांके रोड का भ्रमण कर जतरा स्थल तक पहुंचे। कार्यक्रम में कठरगोंदा, कोगें, जयपुर, हेसल, भीट्टा, चंदवे, चौड़ी टोला, हेहल, हथिया गोंदा, पतरा गोंदा, चौड़ी बस्ती, टिकली टोला, सोसों, मिसिरगोंदा आदि गांव के हजारों की संख्या में महिला-पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में अपनी सांस्कृतिक पहचान काठ का घोड़ा चलपा (रंपा-चंपा) कलशा बरछा, सरना झंडा, ढोंल-नागड़ा के साथ शामिल हुए।
सांसद और विधायक ने लिया हिस्सा
जतरा में राज्यसभा सांसद डॉ. महुआ माजी, विधायक सुरेश बैठा समेत पूर्व पार्षद नकुल तिर्की, टीएसी सदस्य नारायण उरांव, रंजीत टोप्पो, केंद्रीय सरना समिति अध्यक्ष अजय तिर्की सहित कई शामिल हुए। अपने संबोधन में इन्होंने कहा कि जतरा झारखंड की लोक संस्कृति रीति-रिवाज और जनभावनाओं से जुड़ा यह आयोजन समाज में एकता का प्रतीक है। आदिवासी-मूलवासी का हक अधिकार यदि कोई छीनने का प्रयास करेगा तो हमें एकजुटता के साथ सड़क पर उतर कर इसका विरोध करने की जरूरत है।
देर रात तक चला नृत्य-संगीत
पूजा के बाद देर रात तक नृत्य-संगीत का कार्यक्रम चला। जिसमें युवक-युवतियां और स्थानीय लोग ढ़ोल-मांदर की थाप पर देर रात झुमते नजर आए। इसके सफल आयोजन में समिति अध्यक्ष कृष्णा उरांव, ललित लिंडा, मुकेश लकड़ा, अनिल उरांव, प्रदीप लकड़ा, आनंद उरांव, राज तिर्की, देवनारायण उरांव, रामनारायण खलखो, मुन्ना गाड़ी, जगन्नाथ उरांव, मंगा उरांव सहित कई की अहम भूमिका रही।



