स्टार की थाली ‘सात साल से एक टाइम’:  गुलशन देवैया बोले- कुकिंग मेरे लिए मेडिटेशन है, थाली में सिर्फ खाना नहीं, जिंदगी की कहानियां परोसता हूं

स्टार की थाली ‘सात साल से एक टाइम’: गुलशन देवैया बोले- कुकिंग मेरे लिए मेडिटेशन है, थाली में सिर्फ खाना नहीं, जिंदगी की कहानियां परोसता हूं


3 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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फिल्मों में अपने अनोखे किरदारों से दर्शकों का दिल जीतने वाले अभिनेता गुलशन देवैया इन दिनों कांतारा में राजा कुलशेखर के रूप में खूब चर्चा में हैं। अपनी एक्टिंग की तरह उनके खाने का स्वाद भी निराला है। अंधेरी वेस्ट के जापानी रेस्टोरेंट ‘कोफुकु’ में बैठकर उन्होंने हमारे साथ अपने फूड हैबिट्स, पसंदीदा डिशेज और उन यादों पर खुलकर बात की। आज ‘स्टार की थाली ‘ में हम जानेंगे अभिनेता के पसंदीदा डिशेज और उनकी खाने की रूटीन के बारे में।

स्थान: कोफुकु, अंधेरी वेस्ट, मुंबई | स्पेशलमेनू: जापानी और होममेड फ्यूजन

स्थान: कोफुकु, अंधेरी वेस्ट, मुंबई | स्पेशलमेनू: जापानी और होममेड फ्यूजन

खाना खाने की फिलॉसफी — सात साल से एक टाइम

गुलशन बताते हैं कि 2018 से उन्होंने एक नई आदत बना ली है — दिन में सिर्फ एक बार खाना। “मैं पिछले सात साल से यही कर रहा हूं। करीब 75-80% वक्त ऐसा रहता है जब मैं सिर्फ एक टाइम खाता हूं। वे मुस्कराकर कहते हैं- आज एक्सेप्शन है, क्योंकि आपसे मिलने आया हूं।

वह कहते हैं कि इससे पोर्शन कंट्रोल अपने आप हो जाता है। वे डाइट या कैलोरी काउंट नहीं करते। उनका कहना है, “मन का खाता हूं लेकिन संतुलन रखता हूं। शूटिंग के दौरान होटल का खाना भी ऐसे ही एडजस्ट कर लेता हूं, बस ध्यान देता हूं कि सब चीजें थोड़ी-थोड़ी हों — सब्जियां, प्रोटीन, कार्ब्स और फैट्स।”

खुद के हाथ का बना खाना

गुलशन को खाना बनाना बहुत पसंद है। वे कहते हैं, “मुझे कुकिंग में मजा आता है। दूधी मटन मेरी फेवरिट डिश है। कभी कोकोनट मिल्क डालता हूं, कभी बादाम दूध या घर का घी। नए एक्सपेरिमेंट करना अच्छा लगता है।”

वे बताते हैं, “बचपन में मम्मी-पापा को देखकर कुकिंग का शौक लगा। अब तो यह मेरा मेडिटेशन बन गया है।”

स्वाद और सेहत के बीच संतुलन

फिटनेस मेरे लिए बहुत जरूरी है। 40 के बाद शरीर बदलने लगता है — लचीलापन, स्ट्रेंथ, सब थोड़ा कम हो जाता है। तो मैंने समझ लिया कि बैलेंस बहुत जरूरी है। हर इंसान का बैलेंस अलग होता है — उसके काम, जेनेटिक्स और एक्टिविटी के हिसाब से।

अब देखो, मैं ग्रीन टी भी इसी सोच के साथ पीता हूं — जापानी ग्रीन टी। इससे हेल्थ भी ठीक रहती है और स्वाद भी बढ़िया आता है।

2018 में मैंने एक दिन में सिर्फ एक टाइम खाना शुरू किया था। शुरू में तो इतना वेट कम हो गया था कि 75 से सीधा 63 किलो पहुंच गया! उस वक्त ‘कमांडो’ की शूटिंग चल रही थी। विद्युत ने हंसते हुए कहा था, “तू तो बहुत पतला हो गया है!” फिर धीरे-धीरे मैंने अपना इक्विलिब्रियम ढूंढ लिया। अब हमेशा 72-73 किलो के आस-पास रहता हूं — बिल्कुल फिट और बैलेंस्ड।

डेजर्ट भी “रूटीन” का हिस्सा

मैं तो स्वीट टूथ वाला बंदा हूं, और ये बात कभी छुपाता नहीं। मिठाई हमेशा मेरी थाली में रहती है। मुझे ग्रीक स्टाइल दही बहुत पसंद है — उसमें हनी और वॉलनट डालकर खाता हूं। दरअसल, मेरी पत्नी ग्रीस से हैं, तो ये आदत वहीँ से लगी है।

अब हेल्दी तो इसे नहीं कहूंगा, हनी में भी शुगर काफी होती है, लेकिन हां — अगर कुकी या ब्राउनी की जगह ये खा लूं, तो आत्मा सुकून में रहती है।

खाने के साथ प्रयोग और अनुभव

भाई, मैंने तो कई डाइट्स ट्राय कर लीं — कीटो भी कर चुका हूं। लेकिन सच बताऊं, कीटो में जितना फैट खाना पड़ता है ना, आधी एनर्जी तो पेट में ही चली जाती है! दिन में तीन-तीन एवोकाडो खाने पड़ते थे। अब तो सिम्पल रखता हूं — 45 मिनट से एक घंटे में खाना खत्म, बस।

शूट के सेट पर मैं आमतौर पर नहीं खाता। होटल वापस जाकर ही एक बार में खा लेता हूं। सेट पर खा लिया तो बस, ऊर्जा डाउन हो जाती है। और अगर घर पर हूं, तो कभी कोफुकु चला जाता हूं या बांद्रा के किसी जापानी रेस्टोरेंट में। वैसे जापानी खाना मैंने पहली बार 2005 में बेंगलुरु के हरिमा में ट्राय किया था। जूते उतारकर बैठना, वो ट्रेडिशनल माहौल — बहुत सुकून देता है यार।

विपुल शाह के सेट पर सिर्फ वेज खाना

विपुल सर के सेट पर सिर्फ वेज खाना मिलता था। नॉन-वेज खाना बिल्कुल मना था, यहां तक कि होटल की रूम सर्विस से भी सिर्फ वेज फूड ही ऑर्डर किया जा सकता था। हम लोग ब्रैडफोर्ड में शूट कर रहे थे, जो यॉर्कशायर का एक छोटा-सा टाउन है।

मैं कभी-कभी सुशी मंगा लेता था — दिखने में वेज लगती थी, पर असल में नॉन-वेज होती थी। बिल पर जापानी में लिखा होता, तो किसी को पता नहीं चलता और रीइम्बर्समेंट भी मिल जाता था।

रामलीला के सेट पर घर का डब्बा, अनुराग कश्यप के सेट पर ‘कुछ भी चलता है

संजय सर के सेट पर मैंने कभी खाना नहीं खाया, क्योंकि उस समय मैं जिम ट्रेनिंग में था और बहुत हेवी डाइट पर था। ‘रामलीला’ के टाइम पर मेरा वजन करीब 83 किलो था और मैं दिन में पाँच-छह बार खाना खाता था। उसे मेंटेन करने के लिए मैं घर से खुद डब्बे पैक करके ले जाता था।

अनुराग कश्यप के सेट पर तो कुछ भी चलता है—शायद केटरिंग फूड ही होता है। वैसे मुंबई की शूटिंग में जो केटरिंग आता है, वह मुझे ज्यादा पसंद नहीं। बाहर का केटरिंग थोड़ा बेहतर रहता है।

सेट्स पर खाने के किस्से

मैंने अपने करियर में कई को-स्टार्स को करीब से देखा है। रणवीर सिंह को तो याद करता हूं, जब हम ‘रामलीला’ कर रहे थे — दिन में छह-सात बार छोटे मील्स खाता था वो। सबकुछ नापा-तौला, कोई गड़बड़ नहीं। कभी स्पिनेच, कभी ड्राय कीमा, कभी बीन्स… हर बार कुछ नया। सच कहूं तो उसे खाते हुए देखकर मुझे बड़ा इंटरेस्ट आता था।

विद्युत जामवाल की बात करें तो वो अपने फिटनेस रुटीन के राज कभी बताते ही नहीं। बस एक लाइन बोलते हैं — ‘कलरी’ — और फिर चुप।

ओम पुरी साहब के साथ तो बहुत प्यारी याद जुड़ी है। ‘डेड इन द गंज’ की शूटिंग के दौरान उनकी तबीयत ज्यादा ठीक नहीं थी, लेकिन खाने के बेहद शौकीन थे। कहते थे, “भिंडी में बस नमक, जीरा और प्याज — इतना काफी।” आज भी कभी-कभी वही सादा भिंडी बनाता हूं, तो वो याद ताजा हो जाती है।

दोसे पर दोस्ती

कांतारा के निर्देशक ऋषभ शेट्टी से मेरी पहली मुलाकात भी खाने से ही जुड़ी थी — वो भी दोसे से! हम दोनों मल्लेश्वरम के श्री कृष्णा भवन में मिले थे। असल में तो हमें सीटीआर जाना था, लेकिन वहां जगह नहीं मिली। फिर वहीं बैठ गए, आराम से दोसा खाया, बातें कीं — और वहीं से हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई।

लोगों से सीखता हूं कुकिंग का असली स्वाद

कुकिंग मेरे लिए सिर्फ खाना बनाना नहीं, एक तरह की प्रेरणा है। मुझे किसी एक शेफ से नहीं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों से सीखना ज्यादा अच्छा लगता है। याद है, कांतारा के सेट पर हमारे डीओपी अरविंद कश्यप डोसा बनाते थे — घी डालकर, बिल्कुल घर जैसा। उस दोसे की खुशबू आज भी दिमाग़ में बसी है।

सेट पर कई कलाकारों से भी मैंने बहुत कुछ सीखा है। नाना पाटेकर सर खुद कुकिंग करते हैं, उनके साथ खाना बनाते हुए उनकी सादगी और लगन महसूस होती है। जैकी श्रॉफ की कड़ी पत्ता वाली रेसिपी मैंने खुद ट्राय की है — बड़ी दिलचस्प है। और विजय सेतुपति, वो तो खाने के इतने शौकीन हैं कि उनके साथ डिनर हो तो बस बातचीत भी खाने के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। ये सब लोग किसी स्पेशल शेफ से कम नहीं, बल्कि रियल लाइफ के असली ‘कुकिंग गुरु’ हैं मेरे।

थाली में सिर्फ खाना नहीं, कहानियां परोसता हूं

मेरे लिए खाना सिर्फ पेट भरने की चीज नहीं है, वो जिंदगी की कहानियों का एक जरिया है। मुझे हमेशा लगता है, हर थाली की अपनी कहानी होती है — कभी बचपन की, कभी किसी सफर की, या फिर किसी दोस्त की यादों से जुड़ी। जिस दिन खाना सिर्फ भूख मिटाने का तरीका बन जाएगा, उसी दिन उसका असली स्वाद खो जाएगा।

कुकिंग और फिल्मों की बातें करते-करते अक्सर एहसास होता है कि थाली में सिर्फ खाना नहीं, कहानियां भी परोसी जाती हैं। शायद इसलिए खुद को मैं सिर्फ एक ऐक्टर नहीं, बल्कि एक दिल से फूडी मानता हूं — जो हर कौर में जिंदगी का स्वाद तलाशता है।



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