जिला पुलिस से प्राप्त ये प्रकरण तो मात्र एक उदाहरण हैं। लोग आपराधिक गतिविधियों में पड़कर पुलिस की निगरानी और गुंडा-बदमाशों की लिस्ट में तो शामिल हो जाते हैं, लेकिन उनकी मौत के बाद ये कलंक नहीं मिटता। एसएसपी विजय अग्रवाल ने जिले में पहली बार उन हिस्ट्र
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दरअसल पुलिस चोरी या चाकूबाजी या फिर अन्य संगीन अपराधों में संलिप्त लोगों को थानेवार निगरानी या गुंडा बदमाश तो बना देती है, लेकिन समय बीतने के साथ उनके आचरण और व्यवहार को कभी नहीं देखती। इसके चलते साल दर साल ऐसे लोगों के नाम उम्रदराज होने के बाद भी निगरानी या गुंडा बदमाश की लिस्ट में शामिल रहता है। इसमें कुछ ऐसे लोगों के नाम भी है, जिनकी मौत होने के बाद भी पुलिस उन्हें लापता बताकर फाइल चलाती रहती है।
जिला एसएसपी विजय अग्रवाल की संजीदगी के बाद गुंडा एवं निगरानी बदमाशों की लिस्ट का पुनर्मूल्यांकन किया गया। इसके बाद पता चला कि कुल 57 हिस्ट्रीशीटरों की मौत चुकी है, जिनमें 41 के नाम गुंडा बदमाश और 16 निगरानी बदमाश की लिस्ट में है। इसके अलावा जिले में लगातार वारदातों में संलिप्त रहने वाले 117 लोगों की हिस्ट्रीशीट खोली गई। उनमें 93 आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को गुंडा और 24 को निगरानी बदमाश की लिस्ट में डाला गया। इसके अलावा लंबे समय से पेंडिंग पड़े पुराने 102 मामलों को नस्तीबद्ध किया गया।
अपराध छोड़ चुके 61 निगरानी बदमाशों को माफी भी दी गई
1968 हिस्ट्रीशीट खोली, 1990 में मौत: चोरी-नकबजनी की वारदातों में शामिल कमल चौहान (बदला नाम) की पुलिस ने 1968 हिस्ट्रीशीट खोल दी। वर्ष 1990 में उनकी मौत हो गई। उसके जाने के बाद परिवार के लोग भी मूल निवास महासमुंद चले गए। आपराधिक वारदातों में शामिल होने वाले लोगों को लिस्ट से हटाने पुलिस ने उसकी भी पता तलाश शुरू की, लेकिन कैंप के पते पर लापता मिलता रहा, इसलिए हर साल फाइल में फरार घोषित होता रहा। अब 35 साल बाद कमल को निगरानी बदमाश के तमगे से मुक्ति मिली।
53 साल से कोई अपराध नहीं किया: आदतन अपराध की वजह से सरदार सिंह (बदला नाम) की दुर्ग पुलिस ने मार्च 1967 में हिस्ट्रीशीट खोली। जुलाई 1972 से किसी भी प्रकार की आपराधिक वारदातों में शामिल नहीं हुआ। इस बीच पुलिस को बिना सूचना दिए परिवार समेत अमृतसर शिफ्ट हो गया। तब से साल दर साल पुलिस उसे फरार घोषित करती रही। 53 साल बाद जब खोजबीन की तो पता चला कि वर्ष 1998 में उसकी मौत हो चुकी है। मरने के 27 साल तक वह गुंडा बदमाश बना रहा।
20 साल की उम्र में हिस्ट्रीशीट खुली: जोगिंदर सिंह (बदला नाम) मूलत: अमृतसर का निवासी था। अमृतसर पुलिस ने 14 अक्टूबर 1960 में गुंडा बदमाश की हिस्ट्रीशीट खोल दी। वहां से वह भिलाई भाग आया। दुर्ग पुलिस को जानकारी हुई तो सुपेला थाना में भी निगरानी खोल दी गई। 1969 में वह दोबारा पंजाब चला गया, लेकिन पुलिस रिकार्ड में 56 साल से लगातार लापता व फरार घोषित रहा। 1991 में 51 साल की उम्र में मौत हो गई। मौत के 34 साल बाद अब जाकर हिस्ट्रीशीटर के कलंक से छुटकारा मिला।
39 साल से लापता और फरार घोषित था : मूलत: यूपी के जौनपुर का रहने वाला बसंत लोहारे (बदला नाम) भिलाई के सुपेला थाना क्षेत्र में रह रहा था। यहां भिलाई स्टील प्लांट से लोहा चोरी करता था, इसलिए पुलिस ने 1967 में उसे निगरानी बदमाश की लिस्ट में डाल दिया। उम्र के पड़ाव के साथ गलत काम तो छूट गए, लेकिन कागजों में लापता और फरार बना रहा। 39 साल तक पुलिस के दस्तावेज में फरार और लापता घोषित होता रहा। इस बीच 1981 में उसकी मौत हो गई। 2025 में उसे लोहा चोर के दाग से मुक्ति मिली है।



