रघुवीर मीणा बोले-राहुल गांधी की मेरे नाम पर रुचि थी:  उदयपुर देहात जिलाध्यक्ष ने कहा- किसी की सिफारिश से अध्यक्ष नहीं बना, राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई – Udaipur News

रघुवीर मीणा बोले-राहुल गांधी की मेरे नाम पर रुचि थी: उदयपुर देहात जिलाध्यक्ष ने कहा- किसी की सिफारिश से अध्यक्ष नहीं बना, राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई – Udaipur News


उदयपुर देहात कांग्रेस के नए अध्यक्ष रघुवीर सिंह मीणा से बातचीत।

राजस्थान में कांग्रेस के 45 जिलाध्यक्षों में सियासी परिवारों से आने वाले नेताओं की संख्या ज्यादा है। नए चेहरों की जगह जमे-जमाए नेताओं ने बाजी मारी है। कांग्रेस की सुप्रीम बॉडी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) के मेंबर रह चुके रघुवीर मीणा को उदयपुर देहात

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अब रघुवीर सिंह मीणा ने कहा- वे उदयपुर देहात कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष किसी नेता की सिफारिश से नहीं बने है। अपने खुद की प्रोफाइल और राहुल गांधी का मेरे पर अटूट विश्वास था। वे मेरे नाम को लेकर इंटरेस्ट रखते थे।

मीणा ने कहा- राहुल गांधी के विश्वास को और मजबूत बनाकर पार्टी को मजबूत बनाकर रिजल्ट देंगे। हालांकि उन्होंने माना कि राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई तो होती है। अपनों की वजह से उनकी राजनीतिक यात्रा में ब्रेक आया लेकिन स्थितियां समय के साथ बदलती रहती है।

उदयपुर आवास पर जिले भर से आए कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया।

उदयपुर में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद दैनिक भास्कर से बात करते हुए सवालों का जवाब दिया, पढ़िए-

सवाल : आपको उदयपुर देहात का अध्यक्ष बनाने का रोल राजस्थान के किस नेता का रहा? रघुवीर मीणा : राजस्थान के किसी नेता का मुझे अध्यक्ष बनाने में योगदान नहीं है। ये व्यक्तिगत रुचि राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और केसी. वेणुगोपाल की रही हैं। पार्टी ने संभाग जिस परिस्थितियों से गुजर रहे है, उसी क्रम में तय किया है। मेरा किसी नेता की सिफारिश से निर्णय नहीं हुआ है। मेरा खुद का प्रोफाइल ही काफी था।

सवाल : सीब्ल्यूसी से नीचे आकर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष कैसे बन गए? रघुवीर मीणा : हमारी कांग्रेस सरकार के एक केबिनेट मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर, मंत्री होते हुए वार्ड पंच का चुनाव लड़े। जब इस बारे में उनसे मीडिया में पूछा गया। तब उन्होंने कहा कि मैंने पंचायतीराज को समझने और संगठन को समझने के लिए चुनाव लड़ा है।

मैं खुद भी सरपंच, विधायक, सांसद, मंत्री रहा और लेकर संगठन में काम कर चुका हूं। मुझे अनुभव है और उसका लाभ संगठन को दिलाएंगे। कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को पूरा करेंगे।

​सवाल : जिलाध्यक्ष जैसे पद पर आप क्यों आए, क्या कारण? रघुवीर मीणा : मेरा मानना है कि राहुल गांधी और खरगे ने कांग्रेस को हर स्टेट में अलग ढंग से स्थापित करने का काम किया है। संगठन सृजन काम में काफी सीनियर लोगों को स्थापित किया है। मैं ही नहीं मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, जो सरकार में केबिनेट मंत्री रहे, उनको जिलाध्यक्ष बनाया। ओमकार सिंह मरकाम जो सीएसी मेंबर थे, उनको बनाया। ऐसा ही तेलंगाना में भी किया और यहां मुझे जिम्मेदारी दी है।

सवाल : अध्यक्ष बन गए है, अब क्या तैयारी है आपकी? रघुवीर मीणा :मैं मानता हूं कि कांग्रेस को नई दिशा देने के लिए हमें जिम्मा दिया है। ये हमारे लिए बड़ा टास्क है। सबको, अध्यक्ष बनने वाले दावेदारों को साथ लेकर और जहां बिखराव हो रहा है उनको भी साथ लेकर चलेंगे।

मैं कहना चाहता हूं हम पंचायतीराज और नगर निकायों के चुनाव में तालमेल से लड़कर कांग्रेस में नई जान फूंकेंगे। राहुल गांधी को हमसे बहुत उम्मीद है और निश्चित रूप से हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।

सवाल : सलूंबर भी संगठन जिला बन गया, आप वहां से उदयपुर में क्यों आए? रघुवीर मीणा : मैं यहां जिस जगह इंटरव्यू दे रहा हूं, यह उदयपुर शहर में हिरणमगरी सेक्टर 14 में मेरा घर है। मेरे ही नाम पर है। ऐसा नहीं है कि मैं जिला अलग होने से सलूंबर का ही हो गया, मैं यहां का भी हूं और वहां का भी हूं।

संभागीय मुख्यालय का जिलाध्यक्ष होने से मेरी विशेष जिम्मेदारियां है। राहुल गांधी ने व्यक्तिगत तौर पर रुचि लेकर मुझे जिम्मेदारी सौंपी है। उनकी भावनाओं को भी समझता हूं। कार्यकर्ताओं की भावनाओं पर खरा उतरुंगा।

सवाल : आप कभी गहलोत के साथ थे, अब पायलट के साथ? रघुवीर मीणा : राजनीति की जब से शुरुआत हुई, तब से वर्चस्व की लड़ाई होती है। चाहे राजाओं में थी, चाहे राजनीति में हो या संगठन में हो। सब अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करके राज में आना चाहते है। पर जहां संगठन के हित की बात हो, वहां व्य​क्तिगत स्वार्थ दूर करने पड़ते है। मन के भेद न हो, मतभेद हो सकते है। हम मतभेद को भुलाकर एक छतरी के नीचे बैठकर काम करें।

सवाल : लोकप्रिय आदिवासी नेता है लेकिन बीच में क्या हो गया था? रघुवीर मीणा : राजनीतिक सफर में बीच में मेरा ब्रेक होना निश्चित रूप से एक अनअपेक्षित काम हुआ। 1988 से 2008 तक कोई चुनाव मैं और मेरा परिवार नहीं हारा। ये कल्पना भी नहीं कर सकते थे। बाद में ये मोदी लहर में मोदी के असर से और भाजपा वालों ने कुछ धार्मिक भावनाएं भी भड़काई, उसकी वजह से हुआ।

हमारे संगठन में ही कुछ अति महत्वाकांक्षी लोग बागी होकर चुनाव लड़ गए इसलिए हम हारे। परिस्थितियां आती रहती है और बदलती रहती है। अब मैं यह महसूस करता हूं कि चुनाव लड़ने में जितनी रुचि नहीं है उतनी संगठन को मजबूत करने में रुचि है। पार्टी जो आदेश करेगी आगे उसकी पालना करेंगे।

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