दुनिया में शांति के लिए 10 साल में 15 नोबेल:  सेक्स स्लेव बनीं नादिया ने बताई अपनी कहानी; बाल न ढंकने पर मारी गईं अमीनी

दुनिया में शांति के लिए 10 साल में 15 नोबेल: सेक्स स्लेव बनीं नादिया ने बताई अपनी कहानी; बाल न ढंकने पर मारी गईं अमीनी


43 मिनट पहले

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आज अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर जानते हैं शांति के उन पर्यायों के बारे में जिन्हें मिल चुका है नोबेल पीस प्राइज।

1. निहोन हिदांक्यो, 2024

जापान के हिरोशीमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के सरवाइवर्स का यह एक ग्रुप है। जापान में परमाणु हमले के सर्वाइवर्स को हिबाकुशा नाम दिया गया है। हिबाकुशा लोगों ने 1956 में एक संगठन बनाया जिसका नाम निहोन हिदांक्यो यानी जापान कॉन्फिडेरेशन ऑफ A- एंड H-बॉम्ब सर्वाइवर्स ऑर्गेनाइजेशन है।

इस ऑर्गेनाइजेशन से न्यूक्लियर अटैक के विक्टिम्स की कहानियां दुनिया को बताई। ऑर्गेनाइजेशन का मकसद जापान की सरकार से विक्टिम्स के लिए बेहतर सपोर्ट लेना और विश्व को परमाणु हथियारों के बुरे प्रभावों के बारे में आगाह करना है।

93 साल के तेरुमी तनाका निहोन हिदांक्यो शुरू करने वाले लोगों में से एक हैं।

93 साल के तेरुमी तनाका निहोन हिदांक्यो शुरू करने वाले लोगों में से एक हैं।

निहोन हिदांक्यो ऑर्गेनाइजेशन के जरिए परमाणु अटैक के विक्टिम का संस्मरण पढ़िए….

9 अगस्त 1945

नागासाकी, जापान।

तेरुमी तनाका तब 13 साल के थे जब एक एटॉमिक बॉम्ब उनके शहर पर गिरा। उन्होंने बताया, ‘चारों ओर काला धुआं और बिल्डिंगों का मलबा फैला था। मलबे के बीच इंसानी शव बिखरे पड़े थे। मैं अपने परिवार को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। बहुत से लोग बुरी तरह घायल थे, कुछ का पूरा शरीर जल चुका था लेकिन उनकी सांसें चल रही थीं। मगर उन्हें देखने वाला कोई नहीं था।

कुछ आगे जाकर मुझे मेरी बुआ का जला हुआ शव मिला। दादा का शरीर भी पूरी तरह से जल चुका था लेकिन सांसें चल रही थीं। मैंने एक बच्चा देखा जिसकी उंगलियां मानों पिघल गईं थी और शरीर से चमड़ी अलग हो चुकी थी। एक छोटी बच्ची लाशों के ढेर पर दौड़ लगा रही थी। एक नौजवान लड़का जो खुद भी बुरी तरह घायल था, दूसरे लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहा था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’

2. नर्गिस मोहम्मदी, 2023

53 साल की नर्गिस मोहम्मदी को सबसे पहले 1998 में ईरान सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जेल भेजा गया था। उस समय वो एक साल जेल में रहीं थीं।

53 साल की नर्गिस मोहम्मदी को सबसे पहले 1998 में ईरान सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जेल भेजा गया था। उस समय वो एक साल जेल में रहीं थीं।

ईरान की रहने वाली नर्गिस मोहम्मदी एक ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं जिन्हें जेल में रहते हुए यह सम्मान मिला। वो ईरान में 20 साल से भी ज्यादा समय से महिलाओं के हक की आवाज उठा रही थीं।

वो ईरानी सरकार की मौत की सजा और जेल में टॉर्चर के खिलाफ भी मुखरता से आवाज उठाती रहीं। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। नर्गिस को 13 बार गिरफ्तार किया गया। उन्हें 31 साल जेल और 154 कोड़ों की सजा भी सुनाई गई थी।

साल 2022 में ईरान सरकार ने महसा अमीनी नाम की लड़की को केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि उसने अपने बाल सही ढंग से ढके नहीं थे। इसके बाद देशभर में भारी प्रदर्शन शुरू हुए। नर्गिस मोहम्मदी ने जेल से ही अपना विरोध दर्ज किया। सरकार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जिसमें 500 से ज्यादा लोग मारे गए और 20 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया।

3. मारिया रेस्सा, दिमित्री मुरातोव, 2021

मारिया रेस्सा फिलीपींस की और दिमित्री मुरातोव रूस के पत्रकार हैं। दोनों के अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम के लिए सम्मान मिला।

मारिया रेस्सा फिलीपींस की और दिमित्री मुरातोव रूस के पत्रकार हैं। दोनों के अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम के लिए सम्मान मिला।

मारिया रेस्सा का शुरुआती काम साउथ ईस्ट एशिया में टेररिज्म की ग्रोथ पर है। 2012 में उन्होंने एक ऑनलाइन न्यूज साइट रैपलर शुरू की। एक इन्वेस्टिगेटिव पत्रकार के तौर पर उन्होंने देश के राष्ट्रपति के अपनी शक्ति के गलत इस्तेमाल और हिंसा के इस्तेमाल को लेकर कई खबरें छापी। उन्होंने राष्ट्रपति के विवादित एंटी-ड्रग कैंपेन में लोगों के मर्डर को उजागर किया।

वहीं दिमित्री मुरातोव ने 1991 में नोवाया गैजेट की शुरुआत की जो जल्द ही देश में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी का एक बड़ा प्रतीक बन गया। 1995 से मुरातोव ही इसके एडिटर-इन-चीफ रहे हैं। इस दौरान इस अखबार में रूसी सरकार के भ्रष्टाचार, फ्रॉड और मानव अधिकारों के उल्लंघन को लेकर खबरें छपती रहती हैं।

4. डेनिस मुकवीज, नादिया मुराद, 2018

डेनिस मुकवीज (दाएं) और नादिया मुराद (बाएं) को युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा की रोकथाम के लिए काम करने पर सम्मानित किया गया।

डेनिस मुकवीज (दाएं) और नादिया मुराद (बाएं) को युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा की रोकथाम के लिए काम करने पर सम्मानित किया गया।

डेनिस मुकवीज डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के रहने वाले हैं जो पेशे से एक गायनोकोलॉजिस्ट यानी महिलाओं के डॉक्टर हैं। साल 2008 में उन्होंने बुकावु में पन्जी हॉस्पिटल खोला जहां वो यौन हिंसा झेल चुकी हजारों महिलाओं का इलाज कर चुके हैं।

1990 से ही उनका देश सिविल वॉर से जूझ रहा है। इसमें मुख्य लड़ाई देश के जरूरी रॉ मैटीरियल पर कंट्रोल को लेकर रही है। सरकारी फोर्स और रेबेल ग्रुप दोनों ने ही महिलाओं के साथ यौन हिंसा को अपने विरोधी को कमजोर करने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।

मुकवीज दुनियाभर के उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं जो यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं की अंदरूनी चोटों का इलाज करने में माहिर हैं। इसके लिए वो कई बार लंबे ऑपरेशन्स भी करते हैं जो कभी-कभी 18 घंटे तक भी चलते हैं। जब उन्हें पता चला कि उन्हें शांति पुरस्कार मिलने वाला है, वो ऑपरेटिंग रूम में थे।

वो न सिर्फ महिलाओं का इलाज करते हैं बल्कि पब्लिक के सामने ऐसा करने वालों की निंदा करते हैं। इसी वजह से साल 2012 में उन्हें परिवार सहित मारने की कोशिश की गई थी। इसके बावजूद मुकवीज अपना काम करते रहे।

वहीं, नादिया मुराद इराक के कोजो की रहने वाली हैं। वो वहां की यजीदी कम्यूनिटी से हैं जोकि माइनॉरिटी में है। 2014 में इस्लामिक स्टेट यानी IS के आतंकवादियों ने कोजो पर आक्रमण किया जिसमें बुजुर्ग महिलाओं और सभी पुरुषों को मार दिया गया। 21 साल की नादिया को अन्य महिलाओं के साथ सेक्स स्लेव बना लिया गया।

नादिया के साथ लगातार रेप किया गया और इस्लाम अपनाने के लिए धमकाया गया। कुछ महीनों बाद नादिया वहां से भाग निकली और 2015 में जर्मनी पहुंच गईं। वहां पहुंचकर नादिया चुप नहीं रही बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने साथ हुए अत्याचार को लेकर बात की। उन्होंने सोचा कि इस तरह उसके अपराधियों को सजा मिल सकेगी।

5. कैलाश सत्यार्थी, मलाला युसुफजई, 2014

मलाला युसुफजई और कैलाश सत्यार्थी को युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा की रोकथाम के लिए काम करने पर सम्मानित किया गया।

मलाला युसुफजई और कैलाश सत्यार्थी को युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा की रोकथाम के लिए काम करने पर सम्मानित किया गया।

भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला युसुफजई को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और उनकी शिक्षा के लिए आवाज उठाने पर सम्मानित किया गया।

कैलाश सत्यार्थी एक चिल्ड्रन राइट्स एक्टिविस्ट हैं। उन्होंने ‘सेव द चाइल्डहुड मूवमेंट’ और ‘गुड वीव’ ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत की। ये बच्चों को स्लेवरी और चाइल्ड लेबर से दूर रखने को लेकर काम करते हैं। 1998 में कैलाश सत्यार्थी ने चाइल्ड लेबर के खिलाफ एक ग्लोबल मार्च निकाला था जिससे यूनाइटेड नेशन के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन का ध्यान चाइल्ड लेबर के मुद्दे की ओर खिंचा।

पाकिस्तान के स्वात वैली में रहने वाली मलाला युसुफजई उस समय महज 11 साल की थी जब इस्लामिक तालिबान ने यहां 2008 में कब्ज कर लिया। मलाला ने इस दौरान हुई घटनाओं को एक डायरी में लिखा जिसे 2009 में BBC उर्दू ने पब्लिश किया। डायरी में मलाला ने यहा तालिबानी सरकार की आलोचना की थी। इसके बाद एक अमेरिकी डॉक्यूमेंट्री बनाई गई जिससे मलाला फेमस हो गईं। साल 2012 में जब मलाला स्कूल जा रही थीं तो तालीबानी गनमैन ने स्कूल बस में उनके सिर में गोली मार दी गई। उनकी जान बच गई लेकिन उन्हें पाकिस्तान छोड़कर इंग्लैंड भागना पड़ा। तालिबान सरकार ने उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया था। 2013 में टाइम मैगजीन ने मलाला को ‘दुनिया के 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली’ लोगों की सूची में रखा। अपने 16वें जन्मदिन में उन्होंने यूनाइटेड नेशन्स में स्पीच दी।

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