4 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
सात भाई और पांच बहनों समेत 14 लोगों के परिवार में जन्मे उस लड़के ने अपने पुलिस कॉन्स्टेबल पिता को परिवार चलाने के लिए संघर्ष करते देखा। 12 साल की उम्र से ही वह और उसका बड़ा भाई परिवार का सहारा बनना चाहते थे। पढ़ाई-लिखाई छोड़कर छोटे-मोटे काम करने लगे। फिर चोरी की आदत पड़ गई, क्योंकि उसमें तुरंत पैसा मिलता था और पिता के कारण पुलिस सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ भी देती थी।
बालिग होने से सिर्फ 53 दिन पहले 4 नवंबर 1974 को उन्हें पता चला कि एक आंगड़िया (कमीशन के लिए पैसा और कीमती सामान ट्रांसफर करने वाले पारंपरिक कुरियर) आने वाला है।उन्होंने कार्नैक बंदर ब्रिज पर फिल्मी अंदाज में जाल बिछाया और चाकू की नोक पर उसे लूट लिया। जांच ने पुलिस को ही नहीं, बल्कि बॉम्बे (अब मुंबई) के समूचे अपराध जगत को चौंका दिया, क्योंकि यह पैसा मेट्रोपोलिटन बैंक का था और पहली बार किसी बैंक को इस अंदाज में लूटा गया था।
जाहिर तौर पर सनसनीखेज मामले में इस नाबालिग की गिरफ्तारी हुई, जेल गया। लेकिन उसने ऊपरी अदालत में अपील की और जमानत मिल गई। इसके बाद वह कभी जेल नहीं लौटा। उसने बॉम्बे ही नहीं पूरे देश में आतंक का राज फैला दिया था। आप सभी उसे जानते भी हैं। वह कोई और नहीं, बल्कि दाउद इब्राहिम है।
मैंने रिटायर्ड आईपीएस डी. शिवनंदन की 273 पन्नों वाली किताब ‘द ब्रह्मास्त्र अनलीश्ड’ महज दो दिनों में पढ़ी। किताब में बताया गया है कि पुलिस ने कैसे अपराध जगत में बड़े गैंग्स्टर करीम लाला, हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार, अबू सलेम, छोटा शकील, बड़ा राजन से लेकर उनके छोटे-मोटे सहयोगियों तक को खत्म किया।
मैंने यह किताब इसलिए नहीं पढ़ी कि यह बहुत रोमांचक, तेज और क्राइम थ्रिलर जैसी थी। और इसलिए भी नहीं कि एक क्राइम रिपोर्टर होने के नाते मैं इन अपराधियों को जानता था। मैं इनमें से कई अपराधियों से मिला भी था और बात भी की थी। इसलिए मैं ये बहुत-सी कहानियां जानता था।
मैंने ये इसलिए पढ़ी, क्योंकि लेखक ने पुलिसिंग की उस अंदरूनी दुनिया को सामने रखा, जिसे मैंने उस दौर में कभी कवर करने की कोशिश ही नहीं की। तब बॉम्बे की भाषा डर थी और मैंने करियर में आगे बढ़ने के लिए उसी भाषा को बेचा। पुलिस नेतृत्व के दबाव और तनाव पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। अब जब मैं खुद नेतृत्व की भूमिका में हूं तो किताब ने मुझे और आकर्षित किया।
मुझे समझ आया कि पुलिस और क्राइम ब्रांच के प्रमुख के रूप में खुद शिवनंदन ने कैसे उस पेशागत आक्रामकता और अपराध से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति के बीच संतुलन बनाया। और कैसे वे न्यायिक और कानूनी प्रक्रिया के बीच चलती रस्साकशी में फोर्स का मनोबल बनाए रखते थे। पुलिस जानती थी कि ये लोग अपराधी हैं, लेकिन उनको कानून के शिकंजे में लाने के लिए सबूत नहीं होते थे।
इस किताब ने मुझे समझाया कि शिवनंदन जैसे लीडर कैसे राज्य सरकार के साथ मिलकर सिस्टम में सुधार करते हैं। साथ ही फोर्स की इमोशनल इंटेलिजेंस को भी बढ़ाते हैं, ताकि वह दूसरी संस्थाओं से अलग दिखे।
नवंबर में जब मैं यह किताब पढ़ रहा था, तभी प्रतिष्ठित अमेरिकी लेखिका जॉयस कैरल ओट्स ने इलॉन मस्क को ‘बिल्कुल अनपढ़, अनकल्चर्ड’ कहा। उनकी पोस्ट X पर वायरल हो गई। जॉयस ने पूछा कि कोई इतना अमीर शख्स कभी प्रकृति, पालतू जानवरों, फिल्मों, संगीत, इतिहास या खेलों के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट क्यों नहीं करता। इस पोस्ट पर छिड़ी ऑनलाइन बहस में मस्क ने उन्हें ‘झूठी’ कह दिया।
फंडा यह है कि एक अच्छी किताब उठाकर पढ़िए। यह आपके आंतरिक जीवन को समृद्ध बनाती है और आपको दुनिया को देखने का एक व्यापक नजरिया देती है। मैं पढ़ता हूं, क्योंकि इससे मुझे दूसरों को समझने की ताकत मिलती है।



