- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Is The Current System Of Academic Grading Failing?
3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
एक कंपनी प्रबंधन ने अक्टूबर में जॉइन करने वाले 5 कर्मचारियों की वेतनवृद्धि के लिए बजट आवंटित किया। प्रबंधक को प्रस्ताव रखना चाहिए था कि टीम सदस्यों को परफॉर्मेंस रेटिंग्स और बजट के आधार पर वेतन वृद्धि या राशि दी जाए। लेकिन इसके बजाय उन्होंने सभी को खुश करने और अपने पक्ष में रखने के लिए बजट को समान रूप से वितरित कर दिया।
नवंबर में 5 में से दो सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि प्रबंधक को यह नहीं पता कि खराब प्रदर्शन करने वालों को कैसे हटाया जाए और वे गधों और घोड़ों के साथ एक जैसा बर्ताव करते हैं। प्रबंधन भी खुश नहीं था, क्योंकि इससे बाकी कर्मचारियों में गलत संदेश गया था।
इसलिए उन्हें शॉप फ्लोर और मैन-मैनेजमेंट पर एक रिफ्रेशर कोर्स के लिए भेज दिया गया, जहां वो यह दिखावा करते रहे कि स्कूल और विश्वविद्यालय के शैक्षणिक वर्षों के दौरान उन्हें कभी भी ए को छोड़कर कोई दूसरी ग्रेड्स नहीं मिली।
उनके गर्व से भरे ए ग्रेड के दावे ने मुझे हार्वर्ड विश्वविद्यालय की एक हालिया आंतरिक रिपोर्ट की याद दिला दी, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि स्नातक स्तर के छात्रों को बहुत अधिक ए ग्रेड देने से वर्तमान प्रणाली ग्रेडिंग के अपने मुख्य कार्य में विफल हो रही है!
इस रिपोर्ट ने उन छात्रों के बीच हंगामा खड़ा कर दिया, जिन्होंने कहा कि वे पहले ही बहुत पढ़ाई करते हैं, बहुत कम सोते हैं और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए भारी तनाव का सामना करते हैं। लेकिन रिपोर्ट की कुछ संख्याओं ने चौंकाया भी। हार्वर्ड में वर्तमान में स्नातक होने पर मीडियन जीपीए 3.83 है, जबकि यह 1985 में 3.29 था।
2024-25 में कम से कम 60% स्नातकों को ए ग्रेड मिला है, वहीं यह 2005-06 में 45% ही था। हालांकि, छात्रों द्वारा कक्षा के बाहर पढ़ाई में बिताया जाने वाला औसत समय लगभग वही रहा है, जो पिछले महीने तक प्रति सप्ताह 6.08 घंटे से बढ़कर 6.3 घंटे हो गया है। रिपोर्ट “ग्रेड-इन्फ्लेशन” को रोकने और कठोरता को बहाल करने की सिफारिशों की बात करती है।
ग्रेड में बढ़ोतरी वाली बात सिर्फ हार्वर्ड तक ही सीमित नहीं है। भारत का कोई भी स्कूल ले लीजिए, हर प्रिंसिपल साल-दर-साल ज्यादा ए ग्रेड वाले छात्रों का दावा करता है। मैं कई मंचों पर प्रिंसिपलों से सुनता हूं कि स्कूल में मेरे आने के बाद से सौ प्रतिशत पास होने का रिकॉर्ड रहा है और औसतन 70% छात्र ए ग्रेड वाले हैं।
लेकिन इसमें यह समस्या है कि आधुनिक प्रबंधक अपने अधीन काम करने वाले सभी लोगों को खुश रखना चाहते हैं। उनमें प्रदर्शन में असफल होने पर उसे सुधारने के लिए कहने का गुण नहीं है। अब ऐसी समस्याओं ने और किसी का नहीं, खुद अमेरिकी राष्ट्रपति का ध्यान अपनी ओर खींचा है, जिन्होंने विश्वविद्यालयों से ग्रेड-इंटेग्रिटी के प्रति प्रतिबद्ध रहने को कहा है! उनका प्रशासन चाहता है कि विश्वविद्यालय फेडरल-फंडिंग के लाभों के लिए उच्च-शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करें।
अकादमिक जगत और कार्यस्थल के बीच का अंतर अकसर इस बात में निहित होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में जिन स्किल्स को महत्व दिया जाता है, वो उद्यमशीलता में सफलता के लिए जरूरी कौशलों से भिन्न होती हैं।
आंत्रप्रेन्योरशिप जोखिम उठाने, लीक से हटकर सोचने, अनुशासन, व्यावहारिक कौशल और असफलता से सीखने की क्षमता पर निर्भर करती है, जबकि ये गुण हमेशा ही ग्रेड पॉइंट एवरेज (जीपीए) में नहीं झलकते। चूंकि प्रबंधक उत्पादकता से जुड़े होते हैं, इसलिए मशीनों, सामग्री व लोगों से सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए उनमें उद्यमशीलता के कम से कम 50% गुण होने की अपेक्षा की जाती है।
हालांकि वे पहले दो से तो सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने में सफल होते हैं, लेकिन जब मैन-पावर को संभालने की बात आती है, तो वे अकसर गड़बड़ी कर जाते हैं। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के एक विश्लेषण ने तो सुझाया है कि उच्च जीपीए और दीर्घकालिक उद्यमशीलता की सफलता के बीच कोई संबंध नहीं है।
फंडा यह है कि शिक्षाविदों के लिए ग्रेड-इन्फ्लेशन चर्चा का विषय हो सकता है, लेकिन उद्यमियों के लिए यदि ए ग्रेड कार्यस्थलों के लिए अच्छे निर्णय लेने वाले लीडर्स को तैयार नहीं करता है, तो यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है। क्योंकि इसका मतलब यह है कि ग्रेडिंग सिस्टम अपने प्रमुख कार्यों को पूरा करने में विफल हो रहा है!



