मनोज जोशी का कॉलम:  बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों से चिंताएं बढ़ी हैं

मनोज जोशी का कॉलम: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों से चिंताएं बढ़ी हैं


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  • Manoj Joshi’s Column: Attacks On Minorities In Bangladesh Raise Concerns

3 घंटे पहले

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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार

शेख हसीना को सुनाई मौत की सजा ने बांग्लादेश के साथ हमारे लगातार खराब होते रिश्तों पर फिर से ध्यान खींचा है। ढाका की अंतरिम सरकार ने मांग की है कि भारत 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के तहत शेख हसीना को बांग्लादेश को सौंप दे। भारत ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है। वैसे भी संधि में ऐसे बिंदु हैं, जो राजनीतिक रूप से प्रेरित मामलों में इनकार करने की अनुमति देते हैं।

भारत बांग्लादेश का प्रमुख व्यापारिक और विकास से जुड़े मामलों का साझेदार रहा है। उसने बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए ढाका को अरबों डॉलर के कर्ज दिए हैं। लेकिन हसीना के सत्ता से हटने और अंतरिम सरकार की स्थापना ने हमारे मजबूत संबंधों को बाधित कर दिया है।

बांग्लादेश इस समय राजनीतिक संक्रमण, आर्थिक अनिश्चितता और इस्लामिक ताकतों की नई लहर का सामना कर रहा है। धार्मिक कट्टरता का उभार अब हाशिए का मुद्दा नहीं रह गया, यह उसकी दिशा तय करने वाली केंद्रीय शक्ति भी बन सकता है।

बांग्लादेश में हाल के घटनाक्रम केवल राजनीतिक और आर्थिक बदलावों का संकेत ही नहीं हैं; वहां पर कट्टरपंथी प्रवृत्तियों में एक स्पष्ट और चिंताजनक वृद्धि दिखाई दे रही है। यद्यपि बांग्लादेश एक मुस्लिम-बहुल देश है, लेकिन उसकी धर्मनिरपेक्ष परंपराओं, जीवंत नागरिक समाज और भाषाई-आंदोलनों में निहित राष्ट्रीय पहचान के मिश्रण ने लंबे समय तक उग्र प्रवृत्तियों को नियंत्रण में रखा था। पर वह संतुलन अब पहले की तुलना में अधिक अस्थिर प्रतीत होता है।

हाल ही में प्रतिबंधित संगठन हिज्ब-उत-तहरीर ने ढाका में खिलाफत की मांग करते हुए एक रैली निकाली, जिसमें पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके अलावा, पूर्व में हाशिये पर डाल दी गई पार्टी जमात-ए-इस्लामी के बारे में कहा जा रहा है कि वह अपने नेटवर्क को फिर से सक्रिय कर रही है और नए छात्र-नेतृत्व वाले संगठनों तथा संक्रमणकालीन राजनीतिक शक्तियों के साथ तालमेल बना रही है।

धार्मिक अल्पसंख्यकों (विशेषकर हिंदुओं) को हिंसा की बढ़ती घटनाओं का सामना करना पड़ा है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2024 से जून 2025 के बीच अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2,400 से अधिक हेट-क्राइम दर्ज किए गए। कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि इस्लामी कट्टरपंथी नेटवर्क मौजूदा दौर को अपने को मजबूत करने के अवसर के रूप में देख रहे हैं।

अंतरिम सरकार ने एक गैर-दलीय केयरटेकर चुनाव प्रणाली को फिर से लागू जरूर किया है, लेकिन इसमें देरी हो गई है। इसी बीच, सुरक्षा बलों ने असहमति को दबाने के लिए ‘एंटी-टेररिज्म एक्ट’ के उपयोग को तेज कर दिया है। मानवाधिकार पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक विपक्ष भी इसके निशाने पर हो सकता है।

वास्तव में, बांग्लादेश आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। जहां राजनीतिक सुधार, आर्थिक विकास और जलवायु-सहनशीलता अभी भी प्रमुख एजेंडा हैं, वहीं धार्मिक कट्टरवाद का उभार एक ताकतवर फैक्टर बनकर इन सभी प्रयासों को कमजोर करने का जोखिम पैदा करता है।

बांग्लादेश की स्थापना का मूल चरित्र धर्मनिरपेक्षता और भाषा-आधारित पहचान पर टिका था, लेकिन आज इसे दरकिनार किया जा रहा है। जैसे-जैसे अल्पसंख्यक अधिक असुरक्षित होते जाते हैं, सामाजिक एकता कमजोर होती है और साम्प्रदायिक हिंसा का जोखिम बढ़ता है।

बांग्लादेश भारत के कई महत्वपूर्ण पूर्वी राज्यों की सीमा से लगा हुआ है और वहां पर कट्टरपंथी तत्वों का उभार हमारे लिए खतरा पैदा कर सकता है। उतना ही चिंताजनक है बांग्लादेश-पाकिस्तान संबंधों का बढ़ना।

पिछले एक वर्ष में पाकिस्तानी सेना और खुफिया तंत्र के करीब दर्जन भर उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल बांग्लादेश गए हैं। इनमें चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन जनरल साहिर शमशाद मिर्जा और नौसेना प्रमुख एडमिरल नदीद अशरफ भी शामिल थे।

अतीत में पाकिस्तान ने बांग्लादेश की भूमि का उपयोग भारत के उत्तर-पूर्वी उग्रवादियों को समर्थन देने और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के एक ठिकाने के रूप में किया है। बांग्लादेश में अगले साल फरवरी में होने जा रहे चुनावों पर सबकी नजर रहेगी।

बांग्लादेश की स्थापना का मूल चरित्र धर्मनिरपेक्षता और भाषा-आधारित पहचान पर टिका था, लेकिन आज इसे दरकिनार किया जा रहा है। जैसे-जैसे अल्पसंख्यक अधिक असुरक्षित होते जाते हैं, सामाजिक एकता कमजोर होती है (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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