डायबिटीज-मोटापे से जूझ रहे लोगों को अमेरिकी वीजा मिलना मुश्किल:  सरकार पर बोझ कम करना मकसद; हेल्थ, उम्र, फाइनेंशियल स्टेट्स जांचेंगे अधिकारी

डायबिटीज-मोटापे से जूझ रहे लोगों को अमेरिकी वीजा मिलना मुश्किल: सरकार पर बोझ कम करना मकसद; हेल्थ, उम्र, फाइनेंशियल स्टेट्स जांचेंगे अधिकारी


वॉशिंगटन डीसी28 मिनट पहले

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डायबिटी, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अमेरिका वीजा नियमों को सख्त कर रहा है।

डायबिटीज, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अब अमेरिका में प्रवेश पाना मुश्किल हो सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग ने शुक्रवार को दुनियाभर के अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया है कि वे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों को अमेरिका आने या रहने की अनुमति न दें।

यह नियम ‘पब्लिक चार्ज’ (सार्वजनिक बोझ) नीति पर आधारित है, जिसका मकसद ऐसे अप्रवासियों को रोकना है जो अमेरिकी सरकारी संसाधनों पर निर्भर हो सकते हैं।

इसमें वीजा अधिकारियों को सलाह दी गई है कि वे आवेदकों के हेल्थ, उम्र और फाइनेंशियल स्टेट्स की जांच करें। अगर कोई व्यक्ति भविष्य में महंगी चिकित्सा देखभाल या सरकारी सहायता पर निर्भर होने की संभावना रखता है, तो उसका वीजा रिजेक्ट कर दिया जाएगा।

वीजा अधिकारी लोगों के हेल्थ स्टेटस की जांच करेंगे। उनके पूरी तरह स्वस्थ होने पर ही वीजा स्वीकृति मिलेगी।

वीजा अधिकारी लोगों के हेल्थ स्टेटस की जांच करेंगे। उनके पूरी तरह स्वस्थ होने पर ही वीजा स्वीकृति मिलेगी।

वीजा अधिकारी तय करेंगे अप्रवासी सरकार पर बोझ तो नहीं

अधिकारियों को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि आवेदक के स्वास्थ्य को ध्यान में रखना जरूरी है। चिकित्सा स्थितियां जैसे हृदय रोग, सांस की दिक्कत, कैंसर, डायबिटीज, मेटाबॉलिक डिजीज, न्यूरोलॉजिकल डिजीज और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं लाखों डॉलर की देखभाल की जरूरत पैदा कर सकती हैं।

इसके अलावा, अधिकारी मोटापे जैसी स्थितियों को भी ध्यान में रखेंगे, क्योंकि यह अस्थमा, स्लीप एप्निया और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।

नए निर्देशों के तहत, अधिकारियों को यह तय करना होगा कि क्या प्रवासी ‘पब्लिक चार्ज’ बन सकता है, यानी सरकारी संसाधनों पर बोझ, और क्या उसे महंगी लंबी अवधि की देखभाल की जरूरत पड़ेगी।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘वीजा अधिकारियों को यह भी जांचने को कहा गया है कि क्या आवेदक अपने पूरे जीवन में बिना सरकारी सहायता के चिकित्सा खर्च खुद उठा सकता है या नहीं। इसके साथ ही, परिवार के सदस्यों जैसे बच्चों या बुजुर्ग माता-पिता के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखना होगा।

वीजा अधिकारी हेल्थ कंडिशन जांचने के लिए ट्रेंड नहीं

लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क के वरिष्ठ वकील चार्ल्स व्हीलर ने इसे चिंताजनक बताया। उन्होंने कहा कि वीजा अधिकारी हेल्थ कंडिशन को जांचने के लिए ट्रेंड नहीं होते।

व्हीलर ने कहा, ‘कोई बीमारी कितनी खतरनाक है, या फिर उसका कितना असर सरकारी संसाधन पर पड़ेगा अधिकारियों को इसका आकलन करने का अनुभव नहीं है।’

वहीं, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील सोफिया जेनोवेस ने कहा कि ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में चिकित्सा रिकॉर्ड जमा करने पड़ते हैं, लेकिन यह निर्देश आवेदकों की चिकित्सा इतिहास के आधार पर उनके इलाज के खर्च और अमेरिका में नौकरी पाने की चाहत को कम करने पर जोर देती है।

जेनोवेस ने कहा कि डायबिटीज या हार्ट प्राब्लम किसी को भी हो सकते हैं। पहले भी हेल्थ स्टेटस को जांचा जाता था, लेकिन ‘क्या होगा अगर कोई अचानक डायबिटिक शॉक में चला जाए’। अगर यह बदलाव तुरंत लागू हो गया, तो वीजा इंटरव्यू में कई समस्याएं पैदा होंगी।’

वीजा अधिकारी क्या जांचेंगे?

पहले वीजा प्रक्रिया में सिर्फ संक्रामक रोग (TB, HIV) चेक होते थे। अब पुरानी बीमारियों का पूरा इतिहास मांगा जाएगा।

  • आपका इलाज कितना खर्चीला है?
  • क्या आप बिना सरकारी मदद के जीवनभर इलाज करवा सकते हैं?
  • आपके बच्चे को कोई विशेष देखभाल चाहिए? क्या आप नौकरी कर पाएंगे?
  • क्या आपके माता-पिता बीमार हैं? क्या वे आपके साथ रहेंगे?

लोग स्वास्थ्य सेवाएं छोड़ेंगे, बीमारियों का खतरा बढ़ने का अनुमान

ट्रम्प प्रशासन ने 2019 में ‘पब्लिक चार्ज’ नियम को सख्त करते हुए कहा था,’ हम केवल उन व्यक्तियों को अपने देश में प्रवेश देंगे जो हमारे समाज में योगदान देंगे, न की बोझ बनें।’

यह नियम अप्रवासियों, खासकर स्वास्थ्य समस्याओं वालों पर असर डालेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह न केवल वीजा अस्वीकृति बढ़ाएगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में ‘चिलिंग इफेक्ट’ (भय का असर) पैदा करेगा।

1. वीजा और ग्रीन कार्ड अस्वीकृति

  • ट्रम्प के पहले नियम से 2-4.7 मिलियन मेडिकेड/CHIP लाभार्थी कवरेज खो चुके थे। अब डायबिटीज (भारत में 10 करोड़ से अधिक प्रभावित) या मोटापा वाले भारतीय/एशियाई अप्रवासियों को वीजा लेने में मुश्किल आएंगी। H-1B और ग्रीन कार्ड प्रक्रिया कठिन हो सकती है।
  • इसका सबसे ज्यादा असर उम्रदराज माता-पिता या विकलांग बच्चों वाले परिवारों पर पड़ेगा।

2. स्वास्थ्य सेवाओं से दूर रहना (चिलिंग इफेक्ट):

  • 2019 के नियम से 7 में से 1 अप्रवासी परिवारों ने मेडिकेड, SNAP (खाद्य सहायता) या हाउसिंग लाभ छोड़ दिए, भले ही वे योग्य थे। इस नियम के बाद लोग बीमारियों को छिपाने के लिए इलाज टालेंगे, जिससे बीमारियां बिगड़ेंगी।

3. बच्चों पर असर:

  • चूंकि पूरे परिवार की हेल्थ हिस्ट्री की जांच होगी, इसलिए अप्रवासी माता-पिता अपने अमेरिकी नागरिक बच्चों को भी लाभ नहीं लेने देंगे।
  • गर्भवती महिलाओं या क्रॉनिक पेशेंट्स जन्म के समय या प्रिवेंटिव केयर से बचेंगे, जिससे मातृ/शिशु मृत्यु दर बढ़ सकती है।

4. अर्थव्यवस्था पर असर:

  • अमेरिका में काम करने वालों में अप्रवासी का बड़ा हिस्सा हैं। नियम लागू होने के बाद खराब स्वास्थ्य वाले कुशल श्रमिक (जैसे IT प्रोफेशनल्स) कम आएंगे, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है। लेकिन प्रशासन का दावा है कि इससे सरकारी खर्च बचेगा।
गंभीर बीमारियों से जूझने पर वीजा मिलने में कठिनाई हो सकती है। साथ ही वीजा रिजेक्ट होने का भी खतरा होगा।

गंभीर बीमारियों से जूझने पर वीजा मिलने में कठिनाई हो सकती है। साथ ही वीजा रिजेक्ट होने का भी खतरा होगा।

20-30% तक भारतीय आवेदन रिजेक्ट होने का खतरा

ट्रम्प प्रशासन के 2025 पब्लिक चार्ज नियम का भारत पर गहरा असर पड़ेगा। हर साल करीब 1 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, जिनमें से 70% से अधिक H-1बी वीजा धारक आईटी और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों से हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस नियम से भारतीय आवेदनों की अस्वीकृति दर 20-30% तक बढ़ सकती है, खासकर मध्यम आय वर्ग के पेशेवरों के लिए, जो उच्च वेतन वाली नौकरियां नहीं पा सकेंगे।

अगर एक भारतीय इंजीनियर, जिसे डायबिटीज है और परिवार में बुजुर्ग माता-पिता हैं, तो उसका वीजा रिजेक्ट हो सकता है। भले ही उसके पास मजबूत स्पॉन्सर हो। इससे परिवार अलगाव बढ़ेगा।

भारत में डायबिटीज के सबसे अधिक मामले

दुनिया में 537 मिलियन लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं, जो 2045 तक 783 मिलियन हो जाएगा। भारत इसमें नंबर 1 है, वहीं चीन दूसरे नंबर पर (140 मिलियन 2030 में) है।

अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के अनुसार, भारत को ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता है, क्योंकि यहां डायबिटीज के सबसे अधिक मामले दर्ज हैं। 2019 में भारत में 77 मिलियन (7.7 करोड़) वयस्कों को डायबिटीज था, जो 2021 तक बढ़कर लगभग 10.1 करोड़ हो गया।

डायबिटीज एटलस 2025 (11वीं संस्करण) के अनुसार, 2024 में भारत में डायबिटीज प्रभावित वयस्कों (20-79 वर्ष) की संख्या 101 मिलियन से अधिक है, और 2045 तक यह 134.2 मिलियन (13.42 करोड़) तक पहुंचने का अनुमान है।

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