पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री रहे नवाबजादा लियाकत अली खान। फाइल फोटो
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री रहे नवाबजादा लियाकत अली खान की पारिवारिक जमीन के मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) करेगी। यह बात आपको हैरान करने वाली लग सकती है, लेकिन यह सच है। जी हां, खान के पारिवारिक जमीन हरियाणा के करनाल जिले के गांव डबकौली
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यह जमीन लियाकत अली खान के चचेरे भाई उमरदराज अली खान की मलकियत थी, जिनकी साल 1935 में मौत हो गई थी। बाद में उनके वारिसों के नाम इंतकाल दर्ज हुआ। हालांकि देश के बंटवारे के बाद वारिस पाकिस्तान चले गए थे। इसके बाद से इस जमीन को खुर्द-बुर्द करने का खेल शुरू हुआ। साल 2022 में कुछ ग्रामीणों ने इसकी शिकायत हरियाणा के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल विज से की थी। इस मामले को लेकर शिकायतें लगातार होती रहीं, लेकिन जांच अधिकारियों और राजनीतिक संरक्षण के चलते न्याय नहीं हुआ।
कहीं से न्याय न मिलता देख कुछ ग्रामीणों ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर सुनवाई करते हुए 12 सितंबर को हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच सौंप दी। साथ ही 12 जनवरी 2026 की अगली सुनवाई तय की है। सीबीआई ने मामले का डायरी नंबर भी दर्ज कर लिया है।
यहां जानिए खान परिवार की जमीन कैसे बंटी…
- पिता जमींदार थे, अंग्रेजों ने नवाब की उपाधि दी : लियाकत अली खान का जन्म करनाल के डबकौली गांव में हुआ। उनका जमींदार मुस्लिम परिवार था। उनके पिता नवाब रुकनुद्दौला बड़े जमींदार थे और ब्रिटिश सरकार से नवाबी उपाधि प्राप्त कर चुके थे। खान प्रारंभिक शिक्षा भारत में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए, जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। इसी जमींदार परिवार से थे उमरदराज अली खान। जिनकी जमीन को लेकर सारा विवाद है।
- 1200 एकड़ भूमि का इंतकाल 5 पुत्रों के नाम : इस केस को देख रहे एडवोकेट कर्ण शर्मा बताते हैं कि गांव डबकौली के सोनू, धनप्रकाश, वेदप्रकाश, विष्णु, लखमीर, सतपाल सरपंच, विक्रम ने 4 मई 2022 को हरियाणा के तत्कालीन गृह मंत्री को शिकायत दी। इसमें कहा कि वे गांव डबकौली खुर्द में लंबे समय से खेती कर रहे हैं। 1935 में उमरदराज अली खान की मृत्यु के बाद उनकी करीब 1200 एकड़ भूमि का इंतकाल पांच पुत्रों नवाबजादा शमशाद अली खां, इरशाद अली खां, एजाज अली खां, मुमताज अली खां और इम्तियाज अली खां के नाम हुआ। उनकी बेटी जहांगीर बेगम का विवाह 1918 में प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान से हुआ।
- पाकिस्तान जाने के बाद भूमि हुई ‘एवाक्यूई प्रॉपर्टी’ : 1945-46 में डबकौली खुर्द गांव उजड़ गया और इसका रकबा यमुना नदी के बहाव के साथ उत्तर प्रदेश की ओर चला गया। आजादी के बाद उमरदराज अली खान के सभी औलाद पाकिस्तान चले गई। 1950 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘जमींदारी एबोलिशन लैंड रिफॉर्म्स एक्ट’ लागू किया। इसके तहत राज्य ने सारी भूमि अपने हाथों में ले ली और उमरदराज अली खान के वारिसों की जमीन ‘एवाक्यूई प्रॉपर्टी’ (Evacuee Property) घोषित हो गई। ये वो संपत्ति होती है, जो उन लोगों द्वारा छोड़ दी गई थी, जो विभाजन के समय भारत से पाकिस्तान या पाकिस्तान से भारत माइग्रेट हुए। 1962 में जनरल कस्टोडियन ऑफ इंडिया ने अंतिम फैसला दिया कि यह जमीन अब कस्टोडियन के अधीन होगी।

गांव डबकौली खुर्द में जमीन के मामले की जानकारी देते ग्रामीण।
अब यहां जानिए कैसे हुई जमीन की बंदरबांट…
- फर्जी दस्तावेजों से पटवारी-कानूनगो, अधिकारी और नेता हड़प गए जमीन : 1990 के दशक में कुछ भूमाफियाओं ने झूठी वसीयत और फर्जी वारिस दिखाकर करीब 6000 बीघा यानी लगभग 1200 एकड़ कृषि भूमि पर कब्जा कर लिया। ग्रामीणों का आरोप है कि इसमें पटवारियों, कानूनगो, चकबंदी अधिकारियों, राजस्व विभाग के बड़े अधिकारियों, सरकारी वकीलों और कुछ राजनीतिक लोगों की मिलीभगत रही।
- ग्रामीणों की लगातार शिकायतें, लेकिन जांच कमजोर की गई : 2005 में ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री हरियाणा को 150-200 शिकायतें सौंपीं। इसके आधार पर इंद्री थाने में एफआईआर नंबर 291 दर्ज हुई। इसमें धारा 420, 465, 467, 468, 471 और 120-बी लगाई गई। मगर, जांच अधिकारियों ने भूमाफियाओं से मिलीभगत कर शिकायत पत्रों और अंतिम जांच रिपोर्ट को दबा दिया। यह रिपोर्ट आज भी पंचकूला स्थित पुलिस मुख्यालय में दबाकर रखी गई है।
- कब्जे की कोशिशें नाकाम, कोर्ट में केस : 2007-08 में भूमाफियाओं ने जमीन पर कब्जा लेने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने विरोध कर दिया। 2009-10 में ग्रामीणों ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश पर एसआईटी बनी, लेकिन आरोप है कि यहां भी अधिकारियों ने भूमाफियाओं के दबाव में आकर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
- गवाहों को करोड़ों की जमीन देकर केस दबाने का प्रयास : 2011-12 में आरोपियों ने केस को कमजोर करने के लिए पांच गवाहों को करोड़ों की जमीन दिलवाई। जांच अधिकारियों ने भी इसमें सहयोग किया। यहां तक कि कुछ गवाहों को करोड़ों रुपए भी दिए गए, ताकि वे केस से पलट जाएं।

गांव डबकौली खुर्द।
जब पुलिस और प्रशासनिक अफसरों पर उठे सवाल…
- अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप : एडवोकेट रामकिशन बताया कि एक पटवारी और अन्य अधिकारियों ने भूमाफियाओं से मिलकर करोड़ों की संपत्तियां अपने नाम करवाईं। कई पटवारी और चकबंदी अधिकारी भी भूमाफियाओं से मिलीभगत कर चुके हैं। 2012-13 में भूमाफियाओं ने हाईकोर्ट में केस को रद्द कराने की याचिका डाली, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
- पुलिस अधिकारियों पर भी उठे सवाल : 2018 में जांच अधिकारी अंग्रेज सिंह ने कोर्ट में बयान दिया कि उन्हें ग्रामीणों की ओर से कोई शिकायत पत्र नहीं मिला। ग्रामीणों का कहना है कि यह बयान उन्होंने भूमाफियाओं के दबाव में दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने एसपी और डीएसपी करनाल सहित कई अधिकारियों को शिकायत दी। लेकिन आरोप है कि एक डीएसपी ने भूमाफियाओं से करोड़ों रुपए लेकर झूठी जांच कराई और जमीन पर कब्जा करवाया।
- एफआईआर को कमजोर करने की वजह : सरपंच सतपाल के अनुसार, जांच अधिकारियों ने एफआईआर 291/2005 को इसलिए कमजोर किया ताकि उमरदराज अली खान के परिवार की करनाल शहर की लगभग 100 दुकानें और आवासीय मकान भी भूमाफिया हड़प सकें। इन संपत्तियों की कीमत 800 करोड़ रुपए के करीब बताई गई है। इसके अलावा कुंजपुरा सैनिक स्कूल के पास की 50 दुकानें और देशभर की अन्य संपत्तियां भी निशाने पर थीं।
- फर्जी वारिस बनाकर करोड़ों की रजिस्ट्री : ग्रामीणों ने एफआईआर 238 में आरोप लगाया कि जमशेद अली खां, खुर्शीद अली खां, इमित्याज बेगम, मुमताज बेगम और एजाज अली खान के फर्जी वारिसों ने 1813 बीघा 11 बिसवा जमीन की रजिस्ट्री करवा दी। इसमें राजस्व विभाग के उच्च अधिकारी भी शामिल थे। इनके खिलाफ भी धोखाधड़ी और जालसाजी की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।
हाईकोर्ट का आदेश और सीबीआई की एंट्री 12 सितंबर 2025 को केस में जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि अब मामले की गहन जांच जरूरी है। कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षकार अपनी-अपनी जवाबी रिपोर्ट दाखिल करें। अगली सुनवाई की तारीख 12 जनवरी 2026 तय की गई है। एडवोकेट रामकिशन ने बताया कि सीबीआई ने डायरी नंबर दर्ज कर लिया है और जांच शुरू हो चुकी है। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद ग्रामीणों को न्याय की उम्मीद बंधी है।
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