पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:  विवाह उद्योग तो बनता जा रहा है, इसे उपासना भी बनाएं

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: विवाह उद्योग तो बनता जा रहा है, इसे उपासना भी बनाएं


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  • Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Marriage Is Becoming An Industry, Make It A Form Of Worship Too

2 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता

एक समय हमारे देश को राजनीतिक एकता की बहुत जरूरत थी। इसकी पूर्ति की सरदार पटेल ने। आज उनकी जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। पर अब समय आ गया है कि परिवार एकता दिवस भी मनाया जाए। भारत के परिवार टूट रहे हैं। विवाह का स्वरूप बदल रहा है।

पहले तो विवाह ही मुश्किल से हुए, यह समस्या। जैसे-तैसे करो तो संबंध-विच्छेद की नौबत आई। इधर एक नई समस्या सामने आ गई है। युवा विवाह करना ही नहीं चाहते। जब विवाह होता है तो एक गठबंधन की भी क्रिया होती है, जिसमें स्त्री-पुरुष के वस्त्रों की गठान लगाई जाती है ताकि अब ये एक रहें। लेकिन अब तो यह गठबंधन रेशम की डोरी से भी कमजोर है।

आज की युवा पीढ़ी को- वो जिस भी आदर्श व्यक्तित्व को मानते हों, उन्होंने भी विवाह किया और कैसे निभाया- यह सिखाना चाहिए। क्योंकि विवाह जैसी संस्था यदि आहत हुई तो भारत में परिवार बचाना कठिन हो जाएगा। विवाह उद्योग तो बनता जा रहा है, लेकिन इसे उपासना भी बनाया जाए।

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