CJI बोले-न्याय की सक्रियता जरूरी लेकिन यह आतंक न बने:  नागरिकों की रक्षा करने कोर्ट को आगे आना पड़ता है, लेकिन इसकी भी सीमा

CJI बोले-न्याय की सक्रियता जरूरी लेकिन यह आतंक न बने: नागरिकों की रक्षा करने कोर्ट को आगे आना पड़ता है, लेकिन इसकी भी सीमा


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  • CJI Said – Judicial Activism Is Necessary, But It Should Not Become Judicial Terrorism.

नई दिल्ली2 मिनट पहले

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चीफ जस्टिस बीआर गवई सोमवार को दिल्ली में पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एफ आई रिबेलो की किताब ‘Our Rights: Essays on Law, Justice and the Constitution’ के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे।

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने सोमवार को कहा कि देश में न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) जरूरी है, लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिए। यह सक्रियता कभी भी न्यायिक आतंकवाद (ज्यूडिशियल टेररिज्म) में नहीं बदलनी चाहिए।

CJI गवई दिल्ली में पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एफ आई रिबेलो की किताब ‘Our Rights: Essays on Law, Justice and the Constitution’ के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज विक्रम नाथ समेत कई वरिष्ठ वकील और न्यायाधीश मौजूद थे।

CJI गवई ने कहा कि जब भी विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में असफल होती है, तब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक न्यायालयों को आगे आना पड़ता है। उन्होंने बताया कि जजों को किस सीमा तक न्यायिक सक्रियता अपनानी चाहिए, इसे जस्टिस रिबेलो ने अपनी किताब में बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है।

CJI बोले- संसद, सरकार और न्यायपालिका ने मिलकर काम किया

CJI ने बताया कि भारतीय लोकतंत्र के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को उनकी सीमाएं हैं। पिछले 75 सालों में संसद, सरकार और न्यायपालिका ने मिलकर व्यावहारिक तरीके से काम किया है। साथ ही उन्होंने कहा- जस्टिस रिबेलो आज की न्यायपालिका के सामने मौजूद चुनौतियों पर खुलकर लिखते हैं और उनसे विमर्श करने से न्यायिक व्यवस्था और मजबूत होती है।

CJI पहले भी कर चुके हैं ज्यूडिशियल टेररिज्म का जिक्र

इससे पहले 27 जून को चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि संविधान और नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए न्यायिक सक्रियता जरूरी है। यह बनी रहेगी, लेकिन इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदला जा सकता।

CJI गवई नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा था- भारतीय लोकतंत्र के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को उनकी सीमाएं दी गई हैं। तीनों को कानून के अनुसार काम करना होगा। जब संसद कानून या नियम से परे जाती है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है। पूरी खबर पढ़ें…

जानिए क्या न्यायिक सक्रियता और न्यायिक आतंकवाद

  • न्यायिक सक्रियता या ज्यूडिशियल एक्टिविज्म : न्यायिक सक्रियता का मतलब होता है, जब अदालतें खास तौर पर हाईकोर्ट या सु्प्रीम कोर्ट अपने पारंपरिक दायरे से आगे बढ़कर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करती हैं जहां कार्यपालिका यानी सरकार और विधायिका यानी संसद/विधानसभा निष्क्रिय या विफल रही हो। यानी जब अदालतें खुद पहल करके किसी मुद्दे पर फैसला देती हैं, या सरकार को दिशा-निर्देश देती हैं, जिससे आम जनता के अधिकारों की रक्षा हो उसे ज्यूडिशियल एक्टिविज्म कहते हैं।
  • न्यायिक आतंकवाद या ज्यूडिशियल टेररिज्म : यह कोई कानूनी शब्द नहीं है, और इसका इस्तेमाल करना न्यायपालिका का अपमान माना जाता है। जब कोई पक्ष मानता है कि अदालत निष्पक्ष नहीं है। या अदालत बार-बार ऐसे आदेश देती हो जो किसी खास राजनीतिक विचारधारा या समूह के खिलाफ लगते हैं। जब अदालत या न्यायिक संस्थान अपने निर्णयों या दखल से किसी पक्ष को ऐसा महसूस कराए कि उन्हें डराया, धमकाया या दबाया जा रहा है, तो कुछ लोग आलोचना में इस स्थिति को ज्यूडिशियल टेररिज्म कहा जाता है।

सीजेआई गवई के पिछले 3 चर्चित बयान…

4 नवंबर- संविधान में न्याय और समानता के सिद्धांत

CJI बीआर गवई ने 4 नवंबर को कहा था कि लोकतंत्र के तीनों अंग कार्यपालिका, अदालत और संसद ये तीनों मिलकर जनता के कल्याण के लिए काम करते हैं, कोई भी अकेले काम नहीं कर सकता। स्वतंत्रता, न्याय और समानता के सिद्धांत भारतीय संविधान में हैं, जो हर संस्था की कार्यप्रणाली का आधार हैं।

उन्होंने कहा- न्यायपालिका के पास न तो तलवार की ताकत है और न ही शब्दों की। ऐसे में जनता का विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। कार्यपालिका की भागीदारी के बिना न्यायपालिका और कानूनी शिक्षा को पर्याप्त बुनियादी ढांचा देना कठिन है। पूरी खबर लिखें…

11 अक्टूबर: डिजिटल युग में लड़कियां सबसे ज्यादा असुरक्षित, टेक्नॉलॉजी शोषण का जरिया बनी

मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कहा कि डिजिटल दौर में लड़कियां नई तरह की परेशानियों और खतरों का सामना कर रही हैं। टेक्नॉलॉजी सशक्तिकरण नहीं, शोषण का जरिया बन गई है। CJI गवई ने कहा- लड़कियों के लिए आज ऑनलाइन हैरेसमेंट, साइबर बुलिंग, डिजिटल स्टॉकिंग, निजी डेटा के दुरुपयोग और डीपफेक तस्वीरें बड़ी चिंता बन गई हैं। पूरी खबर पढ़ें…

4 अक्टूबरः बुलडोजर एक्शन का मतलब कानून तोड़ना

चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था रूल ऑफ लॉ यानी (कानून के शासन) से चलती है, इसमें बुलडोजर एक्शन की जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल के फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया था कि किसी आरोपी के खिलाफ बुलडोजर चलाना कानून की प्रक्रिया को तोड़ना है। पूरी खबर पढ़ें…

23 नवंबर को रिटायर हो रहे CJI गवई

CJI गवई ने 14 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। उनका कार्यकाल 23 नवंबर को समाप्त हो रहा है। उनके बाद सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस सूर्यकांत को देश का 53वां चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बनेंगे।

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