गढ़वा के फकीर मोहम्मद मजदूर से बने किसान:  छत्तीसगढ़ से सीखी खेती की उन्नत तकनीक, ढाई एकड़ जमीन में उपजाए तीन लाख के खीरा-कद्दू‎ – bhandaria News

गढ़वा के फकीर मोहम्मद मजदूर से बने किसान: छत्तीसगढ़ से सीखी खेती की उन्नत तकनीक, ढाई एकड़ जमीन में उपजाए तीन लाख के खीरा-कद्दू‎ – bhandaria News


मैं भंडरिया प्रखंड का एक साधारण किसान हूं। किसानी से पहले दिहाड़ी मजदूर था।‎ मैं मानता हूं कि अगर इच्छा शक्ति मजबूत हो, तो सीमित संसाधन भी बड़े बदलाव किए सकते हैं। मैं कुछ दिन‎ पहले अपने रिश्तेदारों के यहां छत्तीसगढ़ गया था। वहां किसानों द्वारा अपनाई

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फकीर मोहम्मद बताते हैं कि हर दूसरे दिन 12-15 क्विंटल खीरा-कद्दू मंडी भेजा जाता है।

शुरुआत में थोड़ी कठिनाइयां आईं, लेकिन मेहनत रंग लाई। अब मेरी आमदनी पहले से‎ दोगुनी हो गई है। सीमित जमीन होने के बावजूद मैं आसपास के किसानों से खेत लेकर खीरा और कद्दू की खेती‎ शुरू की है। वर्तमान में मेरे खेतों से हर दो दिन में लगभग 12 से 15 क्विंटल खीरा और 4 से 5 क्विंटल कद्दू मंडी‎ के लिए भेजा जा रहा है। खेती की इस सफलता के पीछे आधुनिक तकनीक का बड़ा योगदान है।

ढ़ाई एकड़ जमीन में उपजाई तीन लाख के खीरा-कद्दू‎

ढाई एकड़‎ जमीन में इन फसलों की खेती में करीब ढाई से तीन लाख रुपए की लागत आई है। जबकि उत्पादन देखकर‎ अनुमान है कि 8 से 10 लाख रुपए की आमदनी होगी। सबसे खास बात यह है कि मेरे खेती को देख कर अब‎ गांव के पांच मजदूरों को रोजाना रोजगार भी मिल रहा है। उपज को खरीदने के लिए मेरे दरवाजे तक व्यापारी वाहन‎ लेकर आ जाते हैं। उन्हें अपने उत्पाद को बेचने के लिए बाजार ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती है।

मेहनत के लहलहाती कद्दू की फसल।

मेहनत के लहलहाती कद्दू की फसल।

ऐसे में केवल उन्हें‎ अपनी खेती के रखरखाव पर ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। अगर सरकार हम जैसे किसानों को थोड़ी मदद‎ करे, तो इससे भी बेहतर उत्पादन किया जा सकता है। आज जब लोग रोजगार के लिए राज्य से बाहर जा रहे हैं,‎ खेत होते हुए भी उन्नत तकनीक की जानकारी से वंचित हैं। उन्हें मैं यही कहना चाहता हूं की सरकार से मदद लेने‎ की कोशिश करें और घर पर रहकर ही खेती से आत्मनिर्भर होने की प्रयास करें। उन्हें जरूर सफलता मिलेगी।‎

खेत-खेत घूमा और प्रयोग करना सीखा

मैं एक महीने तक चांदो, इदरी गांव बलरामपुर में रहा। यह छत्तीसगढ़ में है। यहां पर रहकर में खतों में घूम घूमकर‎ वहां की व्यवस्था देखी। सिंचाई करने का तरीका देखा। यह भी जाना कि कम पानी में कैसे अधिक से अधिक‎ सिंचाई की जा सके। किस मिट्टी में कौन-सी फसल लगाएं, कब खाद दें, पटवन कितने अंतराल पर करें यह सब‎ यहां से सीखा। जब वहां से अपने गांव लौटा तो धीरे-धीरे अपने खेत में वहीं सब प्रयोग शुरू किया और उसके‎ अच्छे परिणाम मिले।‎

जानिए… कौन हैं फकीर मोहम्मद‎

किसान फकीर मोहम्मद खेती से पहले दिहाड़ी मजदूरी का कार्य करते थे। घर में नौ सदस्य हैं। परिवार में दो‎ बेटा, बहू व पत्नी हैं। सभी लोग खेती करके ही आत्मनिर्भर बने हुए हैं। किसान की पत्नी नूरजहां भी खेती में‎ बराबर का सा​थ देती हैं। एक समय ऐसा था जब उनके पास बच्चों को पढ़ाने तक के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए‎ बच्चे पढ़ नहीं पाए। पर अब वह अपनी यह लालसा पोते को पढ़ाकर पूरी कर रहे हैं। वे किसानों को प्रेरित कर‎ रहे हैं कि आप टपक विधि से खेती करें। इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा।‎



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