उत्तराखंड के नैनीताल स्थित आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (ARIES) के वैज्ञानिक डॉ. आलोक भी उस टीम में शामिल थे जिसने अंतरिक्ष में दो ब्लैकहोल्स को एक दूसरे की परिक्रमा करते हुए देखा।
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टीम ने इस दृश्य की एक तस्वीर भी ली, जिसके कारण इस अद्भुत घटना को पहली बार पूरी दुनिया ने अपनी आंखों से देखा।
दैनिक भास्कर एप से की गई बातचीत में डॉ आलोक ने बताया कि कैसे उनकी टीम ने इस पूरे मिशन को सक्सेस बनाया, और आखिर उस चीज को कैसा देखा गया जो हमसे 5 अरब प्रकाश वर्ष दूर है।
बता दें कि फिनलैंड के तुर्कू विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री मौरी वाल्टोनन के नेतृत्व में इस खोज को 9 अक्टूबर को द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया था। इस पूरी टीम में भारत सहित 10 देशों के 32 वैज्ञानिक शामिल थे, और ARIES के वैज्ञानिक डॉ. आलोक ने इस प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाई थी।
पहले वो तस्वीर देखिए और समझिए ये क्यों ऐतिहासिक है….
तस्वीर में दो ब्लैक होल एक दूसरे के सामने नजर आ रहे हैं।
12 साल में एक दूसरे का चक्कर लगाते हैं वैज्ञानिक डॉ. आलोक बताते हैं कि उनकी इस रिसर्च को समझने से पहले OJ 287 के बारे में जान लेना बेहतर होगा, वो कहते हैं-
देखिए पहले समझिए OJ 287 एक क्वासर है, यानी यह किसी गैलेक्सी का बेहद चमकीला और सक्रिय केंद्र है। इसमें एक सुपरमैसिव ब्लैक होल है, जो हमारे सूर्य से अरबों गुना बड़ा है। हमारी टीम ने पाया कि यह केवल एक ब्लैक होल नहीं, बल्कि दो ब्लैक होल का सिस्टम है, जो लगभग 12 साल में एक-दूसरे का चक्कर लगाते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “1980 में भी खगोलविदों को पता था कि दो ब्लैक एक साथ दिखते हैं, हालांकि, वो सब थ्योरी में था। लेकिन अब पहली बार हमने दो ब्लैक होल को तस्वीरों में एक साथ देखा, यानी की प्रैक्टिकली इस तथ्य को हमने साबित किया। ये एक-दूसरे के चारों ओर घूम रहे हैं।
रूस की सैटेलाइट की मदद से मिली तस्वीर
डॉ. आलोक कहते हैं, “ ये इमेज रूस के RadioAstron (Spektr-R) सैटेलाइट की और पृथ्वी आधारित दूरबीनों के एक साथ प्रयोग से ली गई है। जब ये तस्वीर ले गई तब RadioAstron टेलिस्कोप धरती से लगभग 1,90,000 किलोमीटर दूर था, यानी लगभग आधा चंद्रमा की कक्षा जितनी दूरी पर। इससे टेलिस्कोप की रिजोल्यूशन कई गुना बढ़ गई और हम दोनों ब्लैक होल को अलग-अलग देख पाए। यह रिजोल्यूशन करीब 12 माइक्रो-आर्क सेकंड था, जो खगोल विज्ञान में अब तक का रिकॉर्ड है।”

छोटे ब्लैक होल की जेट को ट्रैक करना थी जिम्मेदारी
डॉ. आलोक के अनुसार, इस खोज में उनके साथ ARIES नैनीताल के वैज्ञानिक शुभम किशोर के साथ ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR), मुंबई के ए. गोपकुमार भी शामिल थे। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों में फिनलैंड, पोलैंड, अमेरिका, जापान और अन्य देशों के वैज्ञानिक शामिल थे। वह बताते हैं-
हमारी जिम्मेदारी थी डेटा का विश्लेषण और छोटे ब्लैक होल की जेट का ट्रैक रखना। यह अनुभव नैनीताल में हमारे लिए गर्व का पल था।


रिसर्च के आर्टिकल में छपा एक चित्र। जो इस पूरी घटना को बता रहा है।
समय के विपरीत दिशा में घूम रहा था
डॉ. आलोक बताते हैं, “जब हमने इस सिस्टम की तस्वीर देखी, तो हमें तुरंत संकेत मिल गया कि यही वही दृश्य है जिस पर हमारी टीम और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों ने दशकों से काम किया था। मुख्य संकेत था दो अलग-अलग जेट्स का पैटर्न। बड़ा ब्लैक होल अपनी डिस्क से जेट छोड़ रहा था और छोटा ब्लैक होल, जो उसके चारों ओर घड़ी के विपरीत दिशा में घूम रहा है, उसकी जेट लगातार अपनी दिशा बदल रही थी।
हमारी टीम ने 2014 में गणना की थी कि दोनों ब्लैक होल उस समय किस जगह पर होंगे, और तस्वीर में जेट के शुरुआती दो हिस्से बिल्कुल उसी जगह पर थे। यही पुष्टि करता है कि हमने वास्तव में एक बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम का प्रत्यक्ष अवलोकन किया है।”
भविष्य में आने वाली खतरों से आगाह किया जा सकता है
वैज्ञानिक ने आगे बताया कि ब्लैक होल पर इस तरह के अध्ययन से अंतरिक्ष में होने वाली खतरनाक घटनाओं को समझने का मौका मिलता है। जैसे गुरुत्वीय तरंगें- ये ब्रह्मांड में बहुत बड़ी और शक्तिशाली चीजों से आती हैं। अगर हम इनके बारे में सही जानकारी रखते हैं, तो भविष्य में किसी बड़े धमाके या खतरनाक घटना की चेतावनी पहले से मिल सकती है।




