दीपावली गिफ्ट लाने का वादा, टुकड़ों में घर आई बॉडी:  गैस सिलेंडर विस्फोट में जिंदा जले रामराज; पानी डालकर ठंडा न करते तो फट जाता टैंकर – Rajasthan News

दीपावली गिफ्ट लाने का वादा, टुकड़ों में घर आई बॉडी: गैस सिलेंडर विस्फोट में जिंदा जले रामराज; पानी डालकर ठंडा न करते तो फट जाता टैंकर – Rajasthan News


जयपुर-अजमेर हाईवे पर 7 अक्टूबर की रात केमिकल से भरे टैंकर की टक्कर के बाद LPG सिलेंडर में ब्लास्ट में जिंदा जले टोंक निवासी रामराज का परिवार सदमे में है। ड्राइवर रामराज ने अपने बच्चों से वादा किया था कि इस बार दीपावली पर वो सबके लिए गिफ्ट लेकर आएगा।

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बुजुर्ग मां कहती हैं- उसे रोका था, त्योहार पर मत जा, लेकिन नहीं माना…बोला जल्दी घर आ जाऊंगा…लेकिन अब उसे कहां से लाऊं। मेरा तो परिवार ही उजड़ गया।

रामराज जिस टैंकर का ड्राइवर था, उसमें बेंजीन की जगह पैराफिन नाम का केमिकल भरा हुआ था। FSL की शुरुआती जांच में सामने आया कि एलपीजी सिलेंडर फटने से इतनी भीषण आग निकली थी कि अगर 8 घंटे तक पानी डालकर उसे ठंडा नहीं करते तो केमिकल से भरा टैंकर फट जाता। इससे यह हादसा बड़ा रूप ले सकता था।

भास्कर टीम ने हादसे के बाद पीड़ित परिवार का दर्द जाना। साथ ही FSL की शुरुआती जांच में सामने आए हादसे के कारणों की पड़ताल की। पढ़िए ये रिपोर्ट…

‘आंखों के सामने जिंदा जल गया…बचाने जाते भी तो कैसे’ रामराज के चचेरे भाई धर्मराज मीणा ने बताया कि हादसे की सूचना उन्हें उसी रूट पर चलने वाले देवली के एक ट्रक ड्राइवर ने दी थी। हाईवे के किनारे खड़ा गैस टैंकर देखकर वो पहचान गए कि ये रामराज की गाड़ी है।

हम लोग 8 अक्टूबर की सुबह दूदू के सरावदा पहुंचे थे। मैंने आस-पास के लोगों से बात की तो महादेव ढाबे पर हादसे के वक्त मौजूद लोगों ने बताया- अचानक टक्कर हुई।

किसी को कुछ समझ आता, उससे पहले ही चिंगारी निकली और टैंकर के केबिन में आग लग गई। रामराज केबिन में बुरी तरह फंस गया था। उसका शरीर जल रहा था, वो चिल्लाकर खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था।

परिवार के लोग सफेद पोटली की तस्वीर दिखाते हुए, जिसमें रामराज के शरीर के बचे टुकड़े घर लाए गए थे।

लोगों ने बताया कि अपने बच्चों का वास्ता देकर उसने जान बचाने की गुहार लगाई। केमिकल से भरा टैंकर और एलपीजी गैस सिलेंडरों के रिसाव से हम में से किसी की भी हिम्मत उस तक पहुंचने की नहीं हुई। हमारी आंखों के सामने ही वह तड़प-तड़प कर जिंदा जल गया।

हादसे के बाद परिजन जब अंत्येष्टि के लिए टैंकर की सीट से डेड बॉडी को निकालने गए तो वहां केवल राख बची थी। रामराज के शरीर की 5-6 हड्डियां ही मिल सकीं। वापस एसएमएस अस्पताल पहुंचे तो पुलिस ने सफेद थैली में रामराज के जले अंग और अवशेष थमा दिए। परिवार ने रोते बिलखते अपने गांव राजकोट में रामराज का अंतिम संस्कार किया।

रामराज ने अपने बच्चों से दीपावली पर इस बार गिफ्ट लाने का वादा किया था।

रामराज ने अपने बच्चों से दीपावली पर इस बार गिफ्ट लाने का वादा किया था।

पिछली दीपावली घर नहीं आया, इस साल तोहफे दिलाने का किया था वादा रामराज के बड़े भाई बाबूलाल ने बताया कि वह साल के 300 दिन ड्राइवरी ही करता था। बीते एक महीने से घर नहीं आया था। तीज-त्योहारों पर बमुश्किल ही घर पर आ पाता था। बीते साल भी वह टैंकर लेकर दूसरे राज्य गया था। इसलिए दीपावली पर घर नहीं आ पाया था। परिवार में कमाने वाला वही था। सारी जिम्मेदारी उसने उठा रखी थी। मां भी उसी के पास रहती है। मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती। छोटा भाई रामकुमार पंक्चर जोड़ने का काम करता है। बाकी समय परिवार के साथ बंटाई पर खेती करते हैं।

चचेरे भाई धर्मराज मीणा बताते हैं कि दोनों बेटे पवन (7) और हनी (5) ने पापा से शिकायत की थी कि आप हर बार दीपावली पर घर से दूर रहते हो। हमें कपड़े पटाखे भी नहीं मिलते। इस पर रामराज ने दोनों बेटों से वादा किया था कि इस बार वो दीपावली पर जल्दी घर आ जाएगा। खूब पटाखे, जूते, नए कपड़े और मिठाइयां दिलवाएगा। लेकिन इन खुशियों के घर आने पहले ही रामराज की मौत की खबर ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया है।

धर्मराज ने बताया कि हादसे वाली रात उसका मोबाइल रिचार्ज खत्म हो गया था। करीब 8 बजे उसने अपने मोबाइल का रिचार्ज भी मुझसे करवाया था। उस वक्त वह नसीराबाद से चला था। इसके कुछ घंटे बाद तो उसके साथ यह भयानक हादसा ही हो गया।

रामराज पिछले कई साल से ड्राइवरी कर रहा था। पूरे परिवार का खर्च वही चलाता था।

रामराज पिछले कई साल से ड्राइवरी कर रहा था। पूरे परिवार का खर्च वही चलाता था।

रामराज की बहन बिमला बताती हैं– परिवार के किसी भी सदस्य को न तो सरकारी राशन मिलता है, न ही पीएम किसान निधि का एक रुपया मिलता है। पीएम आवास योजना में भी कोई मकान नहीं मिला। एक कमरे के घर की छत पर खपरैल और घास से बनी हुई है, जो बारिश में टपकती है। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे हैं।

परिवार के सदस्यों ने बताया कि डेढ़ साल पहले परिवार में जवान भतीजे की 1100 केवी की लाइन से करंट लगने से मौत हो चुकी है। ढाई महीना पहले ही परिवार में एक चचेरे भाई की रोड एक्सीडेंट में मौत हुई थी। पिता की 2015 में मौत हो चुकी है। बड़े भाई बाबूलाल के 6 लड़कियां और एक दिव्यांग बेटा है, उनकी जिम्मेदारी भी रामराज उठाता था।

पत्नी को होश ही नहीं की सुहाग उजड़ गया पत्नी चैना देवी पोटली में बंधे पति के अवशेषों को देखकर अपने होश खो बैठी थी। वह बार-बार बेहोश हो रही है। इस बार रामराज ने कहा था दीपावली पर घर ही रहेगा। इसी खुशी में घर में त्योहार मनाने की तैयारियां चल रही थी।

बेटे की मौत के बाद बिलखती मां।

बेटे की मौत के बाद बिलखती मां।

चैना देवी अपने दोनों बेटों और परिवार के कुछ सदस्यों के साथ हरिद्वार गई हुई थी। उनकी नाजुक हालत को देखकर उन्हें संभालने के लिए तीन-चार लोगों को साथ भेजा गया है। 10 साल पहले रामराज के पिता की मौत के बाद अकेली पड़ी उनकी मां रामकन्या देवी के रो-रो कर आंसू सूख गए हैं। बस यही कहती हैं कि- मेरा तो परिवार ही उजड़ गया।

हादसे के चश्मदीद खलासी ने परिवार को बताई 7 अक्टूबर की रात को 306 एलपीजी सिलेंडरों से लदे टैंकर के पास ही दूदू के दांतरी निवासी सद्दाम मोहम्मद का ट्रक भी खड़ा था। सद्दाम RJ 47-GA-1670 नंबर के कैंटर पर खलासी है। मार्बल से लदे ट्रक को यूपी लेकर जाना था। 9.45 बजे ड्राइवर शहाबुद्दीन और सद्दाम खाना खाने के लिए महादेव ढाबे पर रुके थे। ट्रक गैस सिलेंडरों से भरे रामराज के ट्रोले के बगल में खड़ा किया था। इस बीच सद्दाम ट्रोले में चार्जिंग पर लगा अपना मोबाइल लेने आया।

सद्दाम का अभी अस्पताल में इलाज जारी है।

सद्दाम का अभी अस्पताल में इलाज जारी है।

केबिन में घुसने के महज 30 सेकंड बाद ही हड़कंप मच गया। करीब 10.06 बजे होंगे। रामराज के केमिकल के भरे टैंकर ने सिलेंडरों से भरे ट्रोले को जोरदार टक्कर मारी। देखते ही देखते पूरा हाईवे आग से घिर गया। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि संभलने का मौका नहीं मिला। टक्कर के बाद वह केबिन में ही फंस गए थे। आग लगने से पहले उन्हें लोगों ने बाहर निकाल लिया था।

सद्दाम के चाचा आसीन मोहम्मद ने बताया कि उसके चेहरे, सिर, नाक, होंठ, ठोड़ी, गर्दन, मुंह के अंदर, पीठ और घुटनों पर गहरी चोटें आई हैं। चेहरे और मुंह के अंदर करीब 15 टांके लगे हैं। अभी उसकी हालत क्रिटिकल बनी हुई है। डॉक्टर्स का कहना है कि अभी तीन से चार दिन ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा।

अब सुनिए एफएसएल, जयपुर के निदेशक डॉ. अजय शर्मा से कि शुरुआती जांच में उनकी टीम ने क्या खामियां पाईं…

बेंजीन की जगह लिक्विड पैराफिन, कंपनी की सबसे पहली गलती यही डॉ. अजय शर्मा ने भास्कर से बातचीत में बताया कि टीम माैके पर पहुंची तो टैंकर से केमिकल का रिसाव हो रहा था। टैंकर के पीछे बेंजीन लिखा हुआ था। बेंजीन एक बेहद ज्वलनशील पदार्थ होता है। इसलिए टैंकर को दूर ले जाकर खाली करवाया, लेकिन जांच में वह लिक्विड पैराफिन निकला।

टैंकर से रिसाव होता पैराफिन। एक्सपर्ट के अनुसार टैंकर की शील्ड इतनी गर्म हो चुकी थी कि उसे 8 घंटे तक लगातार पानी डालकर ठंडा किया गया।

टैंकर से रिसाव होता पैराफिन। एक्सपर्ट के अनुसार टैंकर की शील्ड इतनी गर्म हो चुकी थी कि उसे 8 घंटे तक लगातार पानी डालकर ठंडा किया गया।

नियमानुसार टैंक के बाहर केमिकल का नाम, आपात स्थिति में उससे निपटने के उपाय, होने वाले नुकसान और सावधानियों के बारे में सही जानकारी लिखना जरूरी होता है। लेकिन केमिकल भेजने वाली कंपनी ने इस नियम का पालन नहीं किया। बेंजीन के ट्रक में लिक्विड पैराफिन ट्रांसपोर्ट किया जा रहा था।

टैंकर में करीब 35000 किलोलीटर लिक्विड पैराफिन था। हालांकि यह कम ज्वलनशील है, लेकिन जिस टैंकर से टकराया, उसमें एलपीजी से भरे 306 में से 204 गैस सिलेंडर फट चुके थे। उनमें से निकली 2840 किलो गैस की गर्मी से यह टैंकर भी बारूद की तरह फट सकता था। दरअसल टक्कर के बाद टैंकर की बाहरी सतह के बहुत ज्यादा गर्म हो गई थी, जबकि अंदर का पैराफिन मिश्रण उस समय वाष्प अवस्था में था। यह वाष्प-धातु प्रतिक्रिया (vapour-metal ignition) के जरिए विस्फोट में बदल सकता था।

टैंकर की जांच करते हुए FSL टीम।

टैंकर की जांच करते हुए FSL टीम।

केमिकल ग्रेड ऑयल के लिए डिजाइन नहीं था टैंकर एफएसएल के अनुसार, जिस टैंकर में पैराफिन ले जाया जा रहा था, वह असल में ‘केमिकल ग्रेड ऑयल’ के लिए डिजाइन नहीं था। ऐसे में अगर टैंकर को 8 घंटे तक लगातार पानी डालकर ठंडा नहीं किया जाता तो टैंकर फट सकता था। इसके बाद पैराफिन खतरनाक रूप ले सकता था। एफएसएल जांच में घटनास्थल पर ऐसा कोई टैग, QR कोड या केमिकल सेफ्टी शीट (MSDS) नहीं मिली, जो यह बताए कि टैंकर में कौन-सा पदार्थ भरा था।

एफएसएल रिपोर्ट ने साफ किया है कि हादसा सिर्फ मानवीय गलती नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही का परिणाम है। ज्वलनशील केमिकल के ट्रांसपोर्ट में सुरक्षा मानक केवल कागजों पर थे। हकीकत में नहीं। इसी लापरवाही से कइयों की जान इस हादसे में जा सकती थी।

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