‘देवी चौधुरानी’ में प्रोसेनजीत चटर्जी का शक्तिशाली अवतार:  एक्शन-इमोशन संग सांस्कृतिक विरासत से जोड़ती फिल्म, एक्टर बोले- इसका हिस्सा बनने पर गर्व है

‘देवी चौधुरानी’ में प्रोसेनजीत चटर्जी का शक्तिशाली अवतार: एक्शन-इमोशन संग सांस्कृतिक विरासत से जोड़ती फिल्म, एक्टर बोले- इसका हिस्सा बनने पर गर्व है


1 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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बंगाली सिनेमा के फेमस एक्टर प्रोसेनजीत चटर्जी की फिल्म ‘देवी चौधुरानी’ जल्द ही रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म को लेकर एक्टर ने हाल ही में दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। यह एक पीरियड ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म में प्रोसेनजीत जबरदस्त एक्शन और इंटेंस अवतार में नजर आएंगे। एक्टर ने बताया कि ‘देवी चौधुरानी’ हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। ऐसी फिल्म का हिस्सा बनने पर गर्व है।

पढ़िए प्रोसेनजीत चटर्जी से हुई बातचीत के कुछ और प्रमुख अंश:

सवाल- इस फिल्म को चुनने की सबसे खास वजह क्या रही हैं?

जवाब- इस फिल्म को करने की तीन बड़ी वजहें थीं। पहली वजह ये कि मैंने अभी तक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर काम नहीं किया था। दूसरी वजह थी इसकी स्क्रिप्ट, जो मुझे बहुत मजबूत और वक्त के हिसाब से सही लगी। साथ ही, डायरेक्टर सुभ्राजीत मित्रा का काम और उनकी डिटेलिंग ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तीसरी और सबसे बड़ी वजह थी मेरा किरदार भवानी पाठक, जो बेहद शक्तिशाली और आध्यात्मिक है। इस फिल्म के जरिए देवी चौधुरानी सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि मातृत्व और समाज की ताकत का प्रतीक बनती हैं।

सवाल- अक्सर हमें अपने इतिहास के कई अनजाने वीरों के बारे में पता नहीं होता। महिला योद्धाओं की बात करें तो सबसे पहले नाम रानी लक्ष्मीबाई का लिया जाता है, लेकिन क्या उनसे पहले देवी चौधुरानी थीं?”

जवाब- हां, उनसे भी पहले कई योद्धा हुए। जैसे फिल्म केसरी पार्ट 2 देखकर मुझे भी पता चला कि ऐसे नाम थे, जिनके बारे में लोग चर्चा नहीं करते। देवी चौधुरानी और भवानी पाठक बहुत महत्वपूर्ण किरदार थे, जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, लेकिन अपनी सीमित जगहों पर।

सवाल- लोग अक्सर कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम अलग थे, क्या यह सच है?

जवाब- नहीं, इतिहास बताता है कि ऐसा नहीं था। भवानी पाठक (एक सन्यासी) और मजरू शाह (एक फकीर ) ने 1700-1740 के बीच मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई की। उनकी लड़ाई सिर्फ अंग्रेजों से नहीं थी, बल्कि भूख से मर रहे गरीबों के लिए भी थी। उनका कहना था कि पहले लोगों को खाना मिलना चाहिए, तभी असली लड़ाई हो पाएगी।

सवाल- आज के इंडिया में इस कहानी की कितनी अहमियत है, जहां हम भाषा, जाति और धर्म के आधार पर बंटते हैं? अगर फिल्म का संदेश सही से समझा जाए, तो क्या ये दूरियां मिट सकती हैं?

जवाब- ये बंटवारे तो हमारे ही लोगों ने बनाए हैं। हिंदू, मुस्लिम और सन्यासी की लड़ाई इतिहास में रही, लेकिन वो सब देश के लिए था।

सवाल- भवानी पाठक और देवी चौधुरानी की प्रेरक कहानियां नई पीढ़ी तक पहुंचे, इसलिए क्या यह फिल्म देखना जरूरी है?

जवाब- ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए ताकि जेनरेशन जेड को पता चले कि हमारी आजादी की जड़ें 200-250 साल पहले से हैं। जैसे मेरी जुबली सीरीज देखकर बच्चों को फिल्मों के इतिहास का पता चला, वैसे ही ये कहानी उन्हें अपनी विरासत और संघर्ष से जोड़ देगी।

सवाल- जब ऐसी फिल्में आती हैं तो नए लोगों को लगता है कि इनमें बस मैसेज होगा, एंटरटेनमेंट या कमर्शियल चीजें नहीं होंगी। आपने कैसे ध्यान रखा कि फिल्म में मैसेज भी मिले और एंटरटेनमेंट भी हो?

जवाब- फिल्म में पूरा मनोरंजन है और खूब एक्शन भी है। लेकिन हमने सिर्फ कमर्शियल बनाने के लिए कहानी की आत्मा को नहीं बदला। फिल्म स्लो नहीं है, बल्कि बहुत क्लासी और अलग अंदाज में कहानी कही गई है। इसमें लड़कियों की टीम ने दमदार फाइट की है, जिसे देखकर थिएटर में महिलाएं भी सीटियां बजाएंगी। खासकर बंगाल में लोग इस फिल्म को लेकर बहुत एक्साइटेड हैं।

सवाल- एक्टिंग में तो आपने हर रोल को बहुत अच्छे से निभाया है। लेकिन इस फिल्म में आप का एक्शन और इंटेंस अवतार अलग नजर आ रहा है। इसके लिए आपने क्या तैयारी की थी?

जवाब- मैंने इस किरदार के लिए बहुत आंतरिक तैयारी की। सिर्फ एक्टिंग से ये नहीं हो सकता था, इसलिए मैंने अकेले रहकर मेडिटेशन जैसा अभ्यास किया। शारीरिक मेहनत भी करनी पड़ी और पुराने समय के कुछ कौशल दोबारा सीखने पड़े। साथ ही, बंगाली भाषा का उच्चारण मुश्किल था क्योंकि किरदारों की पृष्ठभूमि अलग-अलग जगहों से थी। कुल मिलाकर यह रोल निभाने के लिए बहुत समय और अभ्यास लगा।

सवाल- इतना इंटेंस रोल करने के बाद खुद को बाहर निकालना कितना मुश्किल होता है और सेट पर सबसे खूबसूरत या इमोशनल पल कौन सा था?

जवाब- मेरे लिए सबसे यादगार पल वो था जब काली मां की मूर्ति के सामने शूट किया। उस समय किरदार का सिंपल लड़की से ताकतवर रूप में बदलना बहुत खास लगा। मां की आंखों में देखते ही एक अजीब सा एहसास हुआ और हम दोनों इमोशनल होकर रो पड़े।

सवाल- आपके हिंदी दर्शक जिन्होंने आपको वेब सीरीज जुबली, खाकी- बंगाल चैप्टर और फिल्म मालिक में देखा है, वे आगे भी आपको और देखना चाहते हैं। उन्हें आप क्या कहना चाहेंगे?

जवाब- मैं हमेशा अच्छे किरदार निभाने की कोशिश करूंगा। बस मुझे सही रोल मिलता रहे, ताकि मैं उन्हें पूरी ईमानदारी से कर सकूं।

सवाल- दोनों इंडस्ट्री में आपको क्या फर्क दिखाई देता है?

जवाब- मुझे तो कोई बड़ा फर्क नहीं लगता। बंगाली इंडस्ट्री में मैं 40 साल से ज्यादा काम कर चुका हूं, तो वो तो परिवार जैसा है। मुंबई में भी जब नए लोगों, नई पीढ़ी के साथ काम करता हूं, तो वहां भी उतना ही प्यार और अपनापन मिलता है। जुबली को ही पांच साल से ऊपर हो गए, लेकिन आज भी हमारी टीम जुड़ी रहती है। इस वजह से मुझे हमेशा एक खास माहौल और जुड़ाव महसूस होता है।

सवाल- इतने सालों से बच्चों से लेकर बड़े तक आपका प्यार और फेमस रहना कैसे संभव हुआ, आप खुद को कैसे इतना रिलेटेबल बनाए रखते हैं?

जवाब- देखिए, ये शक्ति मेरी अपनी नहीं है, जब भी पब्लिक शो या इवेंट में जाता हूं, लोगों की एनर्जी से मेरी उम्र लगती है कम हो जाती है। मैं बहुत आराम से रहता हूं, भाग-दौड़ पसंद नहीं करता। मैं बस आराम करता हूं, काम का मजा लेता हूं। योग करता हूं और सही खाना खाता हूं। यही है मेरी खुशी और सेहत का राज।



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