ब्रिटेन-कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को देश की मान्यता दी:  स्टार्मर ने कहा- इजराइली अवैध कब्जा खत्म करने में मदद होगी, नेतन्याहू बोले- फिलिस्तीनी देश नहीं बनेगा

ब्रिटेन-कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को देश की मान्यता दी: स्टार्मर ने कहा- इजराइली अवैध कब्जा खत्म करने में मदद होगी, नेतन्याहू बोले- फिलिस्तीनी देश नहीं बनेगा


लंदन9 घंटे पहले

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ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर ने रविवार को लंदन में 10 डाउनिंग स्ट्रीट से फिलिस्तीन को देश की मान्यता देने का ऐलान किया।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने रविवार को फिलिस्तीन को एक आजाद देश की मान्यता देने का ऐलान किया। इसके साथ ही कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश की मान्यता देने की घोषणा की है।

स्टार्मर ने कहा कि यह कदम इजराइल के अवैध कब्जे को खत्म करने और शांति लाने में मदद करेगा। इसके तहत एक नई फिलिस्तीनी सरकार इजराइल के साथ मिलकर काम करेगी। इसमें हमास की कोई भूमिका नहीं होगी।

भारत-चीन समेत अब तक 140 से ज्यादा देश फिलिस्तीन को देश की मान्यता दे चुके हैं।

नेतन्याहू बोले- यह कदम आतंकवाद को इनाम देना

वहीं, इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा का फिलिस्तीन को आजाद देश मानना आतंकवाद को इनाम देना है। जॉर्डन नदी के पश्चिम में फिलिस्तीनी देश नहीं बनेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों को दोगुना कर दिया है और इसे और बढ़ाएंगे। नेतन्याहू ने चेतावनी दी कि वह इस मान्यता का जवाब अमेरिका से लौटने के बाद देंगे।

ब्रिटेन ने क्यों लिया फैसला?

ब्रिटिश पीएम ने कहा कि यह फैसला इजराइल को सजा देने के लिए नहीं लिया गया है, लेकिन अगर इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गाजा में सैन्य कार्रवाई को कम हिंसक तरीके से और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते हुए किया होता, तो शायद यह कदम न उठाया जाता।

इससे पहले ब्रिटिश डिप्टी पीएम डेविड लैमी ने कहा था कि अगर ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देता है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि कोई नया देश तुरंत बन जाएगा। उन्होंने कहा कि मान्यता सिर्फ एक शांति प्रक्रिया का हिस्सा है। लैमी ने बताया कि ऐसा कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ की उम्मीद बनी रहे।

टू स्टेट सॉल्यूशन इजराइल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष को सुलझाने का एक प्रस्तावित तरीका है। इस के तहत, इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को अलग-अलग, स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी जाएगी।​

कनाडा बोला- फिलिस्तीन लोकतांत्रिक देश बनेगा

कनाडा के पीएम मार्क कार्नी का कहना है कि यह कदम मध्य पूर्व में शांति लाने और टू-स्टेट सॉल्यूशन को बचाने के लिए है। इस समाधान में फिलिस्तीन एक आजाद और लोकतांत्रिक देश बनेगा, जो इजराइल के साथ शांति से रहेगा।

कनाडा ने कहा कि वह फिलिस्तीन को मान्यता देकर शांति की उम्मीद बनाए रखना चाहता है। यह कदम हमास का समर्थन नहीं करता, बल्कि मांग करता है कि हमास बंधकों को छोड़े, हथियार डाले, और फिलिस्तीन की सरकार में कोई भूमिका न ले।

वहीं, ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानीज ने कहा-

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ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीनी लोगों की आजाद देश की इच्छा का सम्मान करता है। यह कदम टू-स्टेट सॉल्यूशन के लिए हमारी पुरानी कोशिश को दिखाता है, जो इजराइल और फिलिस्तीन के लिए शांति लाने का एकमात्र रास्ता है।

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फिलिस्तीन ने अमेरिका से भी मान्यता की अपील की

फिलिस्तीन ने ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के फैसले की तारीफ की है। फिलिस्तीन ने अमेरिका और उन देशों से भी मान्यता की अपील की है, जिन्होंने अभी तक उसे मान्यता नहीं दी है।

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि ब्रिटेन का यह कदम क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए जरूरी है। वहीं, फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने कहा- हम ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के फैसले का स्वागत करते हैं। यह टू-स्टेट सॉल्यूशन को बचाने और शांति लाने की दिशा में एक कदम है।

इजराइल-हमास जंग में अब तक 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि गाजा में रहने वाले 20 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है।

ट्रम्प का फिलिस्तीन को मान्यता देने से इनकार

ब्रिटिश पीएम ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है, जब अमेरिका के कई राजनेताओं ने ब्रिटेन पर ऐसा न करने का दबाव डाला था। उनका कहना था कि इससे न सिर्फ इजराइल की सुरक्षा पर असर पड़ेगा, बल्कि गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए लोगों के परिवारों की स्थिति भी और कठिन हो जाएगी।

पिछले हफ्ते ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी साफ कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती।

दूसरी तरफ, इजराइल ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना असल में आतंकवाद को इनाम देने जैसा है।

ब्रिटेन ने 1917 में यहूदी देश बनाने का समर्थन किया था

ब्रिटेन और फ्रांस का यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि ये न सिर्फ ग्रुप7 (G7) में शामिल हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य भी हैं।

मिडिल ईस्ट की राजनीति में ब्रिटेन और फ्रांस की भूमिका ऐतिहासिक रही है। पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र को अपने हिस्सों में बांट लिया था। तब ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर अधिकार मिला था।

1917 में ब्रिटेन ने ही बाल्फोर घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें यहूदियों के लिए उनका देश बनाने का समर्थन किया गया। लेकिन घोषणापत्र का वह हिस्सा, जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी, कभी गंभीरता से लागू नहीं हुआ।

ब्रिटेन लंबे समय से टू स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन करता रहा है, लेकिन उसकी शर्त यही रही है कि फिलिस्तीन को मान्यता शांति योजना के हिस्से के रूप में ही दी जानी चाहिए। अब ब्रिटेन के अधिकारियों को डर है कि ऐसा समाधान लगभग नामुमकिन होता जा रहा है।

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