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श्रीगंगानगर का सादुलशहर
6 साल की गंगा (बदला हुआ नाम) को रोज दादाजी या उसकी मां स्कूल लेने जाते। स्कूल से लौटकर गंगा पहले खाना खाती और फिर टॉफी। टॉफी लेने अकेली खेलते-कूदते नजदीक एक दुकान पर जाती। टॉफी लेकर खुशी-खुशी घर लौट आती।
गंगा के पिता व्यापारी थे। मां घर संभालती थी। परिवार खुशहाल था। पूरा मोहल्ला गंगा से लगाव रखता। 19 साल का दुकान मालिक भी उससे खूब बातें करता। दुकान मालिक गंगा के माता-पिता का दूर का रिश्तेदार था।
22 दिसम्बर, 2015 की दोपहर भी गंगा ने स्कूल से लौटकर रोज की तरह मां से टॉफी लाने के लिए 1 रुपया लिया। उछलती-कूदती टॉफी लेने के लिए निकली, लेकिन घर नहीं लौटी।
रोज 15-20 मिनट में आ जाती थी। ऐसे में आधे घंटे तक नहीं लौटी तो मां और दादा को चिंता हुई।
गली में झांका तो कोई नहीं था। आस-पड़ोस में पूछना शुरू किया। पड़ोसियों को पता चला तो वे भी गंगा की तलाश में जुट गए। मासूम का कहीं पता नहीं चल पा रहा था। घबराई मां का रोना नहीं रुक रहा था। रोते-रोते पति को फोन किया।
सब लोग ढूंढते-ढूंढते उस दुकान पर पहुंचे, जहां वो टॉफी लेने गई थी। दुकान मालिक बाहर ही खड़ा था। उससे पूछा तो बोला- मुझे नहीं पता गंगा कहां है? मैं तो खुद शोर सुनकर बाहर निकला हूं। हां, एक बाबा तीन-चार दिन से मोहल्ले में घूम रहा है। कहीं उस बाबा ने तो कोई गड़बड़ नहीं की?
दुकानदार की बात से परिवार और घबरा गया। 3 घंटे की तलाश के बाद भी गंगा का कोई पता नहीं चला। अनहोनी की आशंका बढ़ने लगी। लोगों ने गंगा के माता-पिता को थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी। माता-पिता थाने पहुंचे और रिपोर्ट दर्ज कराई।

पुलिस ने गंगा की गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया। पुलिस भी मोहल्ले में पहुंची। एक-एक पड़ोसी से पूछताछ की। सभी का कहना था कि हमने गंगा को नहीं देखा। दुकान मालिक की बताई बाबा की बात भी पुलिस ने सुनी। दुकान मालिक ने पुलिस को बताया कि वह बाबा मोहल्ले से बाहर खेतों में पेड़ों के नीचे कहीं भी बैठा रहता है।
बाबा को ढूंढने के लिए पुलिस के साथ गंगा के पिता, दुकान मालिक व पड़ोसी भी खेतों की ओर चल दिए। अंधेरा होने तक ढूंढते रहे, लेकिन न बाबा मिला और न गंगा का कोई सुराग हाथ लगा।
पुलिस ने आस-पास खेतों पर काम करने वालों को बुलाया। बाबा के बारे में पूछताछ करनी शुरू की। पुलिस को किसानों ने एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए बताया कि बाबा कुछ दिनों से इसी पेड़ के नीचे आंखें बंद करके बैठा रहता था।
पुलिस ने पूछा- आज भी देखा था क्या? किसानों ने बताया- देखा तो आज सुबह भी था। इसी पेड़ के नीचे बैठा था। दोपहर बाद नहीं देखा। फिर पुलिस ने पूछा कि किसी बच्ची को बाबा के आस-पास देखा। किसानों ने इनकार कर दिया।

पुलिस ने गंगा की फोटो आस-पास के थानों में भिजवा दी। मुखबिरों से भी अलर्ट किया गया। सभी को कहा गया कि कोई बाबा दिखा हो किसी बच्ची के साथ तो तत्काल सूचना दें। रात हो चुकी थी। थक-हार कर गंगा के पिता, दुकान मालिक और अन्य पड़ोसी घर लौट आए।
इधर, पुलिस ने शहर के बाहर पेट्रोल पंपों और ढाबों से भी जानकारी लेने की कोशिश की। गंगा की फोटो दिखाई। बाबा के बारे में भी पूछा, लेकिन लेकिन हाथ खाली रहे।
पुलिस की जांच टीम का मानना था कि 6 साल की बच्ची घर से ज्यादा दूर नहीं जा सकती। यदि कोई ले गया है तो ऐसा नहीं हो सकता कि किसी ने देखा नहीं हो।
पुलिस ने अगले दिन 23 दिसम्बर की सुबह रात वाली पेट्रोलिंग टीमों और अपने खबरियों से भी पूछा। उन्होंने कहा कि पूरी रात इलाके में कोई बाबा नहीं दिखा और न कोई बच्ची।
तब पुलिस को दाल में काला नजर आने लगा। मोहल्ले वालों से पूछा कि बाबा गलियों में अक्सर घूमता रहता था क्या? महिलाओं ने कहा कि उन्होंने बाबा को गलियों में घूमता नहीं देखा। अब पुलिस को बाबा वाली कहानी झूठी लगने लगी।

पुलिस के सामने बड़ा सवाल था- बाबा मोहल्ले के बाहर खेत में पेड़ के नीचे बैठा रहता था। आमतौर पर मोहल्ले की गलियों में भी घूमता नहीं था। ऐसे में एक 6 साल की बच्ची बाबा के पास अपने आप क्यों जाएगी? और अगर बच्ची मोहल्ले से बाहर गई तो उसे किसी ने देखा क्यों नहीं? इन सवालों का किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
इन सवालों ने जांच का एंगल बदल दिया। पुलिस को अब मोहल्लेवालों पर ही शक होने लगा। टीम को लग रहा था कि गंगा के गायब होने में किसी मोहल्ले वाले का ही काम है या फिर परिजनों का। पुलिस ने तय किया कि अब मोहल्ले में ही गंगा के मामले को इन्वेस्टिगेट करेंगे।
पुलिस गंगा के घर पहुंची। पिता से किसी पड़ोसी से अनबन की बात पूछी। गंगा के दादा-पिता और मां ने कहा कि दशकों हो गए यहां रहते-रहते। किसी से कभी कोई कहासुनी नहीं हुई।

पुलिस के साथ गंगा की तलाश में परिजन और दुकान मालिक भी शामिल रहे। पुलिस ने गंगा के पिता और मां को थाने में आने को कहा। दोनों थाने पहुंच गए। पुलिस ने दोनों से 22 दिसम्बर, 2015 की सुबह से गंगा के गायब होने तक की छोटी से छोटी बात बताने को कहा।
मां ने बताया- गंगा सुबह स्कूल गई थी। छुट्टी के समय उसके दादा उसे स्कूल लेने जाते हैं। 22 दिसम्बर को वे नहीं जा पाए। इस कारण मुझे जाना पड़ा। छुट्टी के समय थोड़ी नाराज थी कि दादाजी क्यों नहीं आए? फिर घर आने के बाद दादाजी ने वादा भी किया था कि शाम को घुमाने ले चलेंगे। खुशी-खुशी खाना खाया। टॉफी लेने घर से बाहर चली गई। इस बीच उसके दादा सो चुके थे। इस कारण उन्होंने गंगा को बाहर जाते हुए नहीं देखा।
पिता ने कहा कि मेरी बच्ची छोटी जरूर है, लेकिन इतनी समझदार है कि अनजान के साथ जा ही नहीं सकती। गंगा के लापता होने की गुत्थी लगातार उलझती जा रही थी। मामला अपहरण का नहीं लग रहा था क्योंकि घनी आबादी के बीच किडनैपिंग करना आसान नहीं था। इसके अलावा फिरौती के लिए किसी का फोन भी नहीं आया था।

पुलिस ने जांच के दौरान ये भी पता किया कि क्या कोई व्यक्ति मोहल्ले से एक-दो दिन से गायब है, लेकिन सभी लोग मोहल्ले में मौजूद थे। पुलिस का मानना था कि मोहल्ले का कोई गड़बड़ करता तो बचने के लिए मोहल्ला छोड़ देता।
पुलिस को अब तक की तलाश में गंगा के गायब होने के पीछे की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी। पुलिस और परिवार को ये सवाल परेशान कर रहे थे…
- आखिर 6 साल की गंगा कहां थी?
- अगर किसी ने किडनैप किया तो फिरौती के लिए फोन क्यों नहीं आया?
- क्या किसी की परिवार से कोई दुश्मनी थी?
- और सबसे बड़ा सवाल- क्या गंगा सही सलामत थी?
कल राजस्थान क्राइम फाइल्स, पार्ट-2 में पढ़िए इन सवालों के जवाब…
